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इस प्यार को क्या नाम दें...

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विकास के इस दौर में मैंने अपने अहाते में अबतक साँस ले रहे नींबू के गाछ से सारे फल तोड़ लिए हैं। डर है, पता नहीं विकास और आस्था के घालमेल में वो शहीद न हो जाए। जब विकास के नाम पर मुंबई के आरे इलाके दो हज़ार से ज्यादा पेड़ शहीद हो गए तो फिर नींबू के गाछ की क्या औकात। वैसे भी आस्था के सामने किसी की औकात नहीं देखी जाती। देखी जाती है सिर्फ नियत और स्वार्थ। वैसे, आस्था और नींबू का पुराना याराना है। आस्था जब भी सामने खड़ी होती है नींबू सरेआम तड़प-तड़पकर दम तोड़ देता है और उफ! तक नहीं करता। प्रीत का ऐसा उदाहरण शायद ही कहीं मिले। पर पता नहीं, यह प्रीत, बिहार के पकड़ुआ विवाह जैसा तो नहीं है। राह चलते लड़के को उठाया और सीधा मंडप में लैंड कराया। यही हाल आस्था और नींबू के साथ तो नहीं है। आस्था कहीं और चिपकी है और नींबू को मिर्च के गठबंधन के साथ आस्था के गले में जबरन लटक बना दिया जाता है। बेचारी आस्था। न चाहते हुए भी नींबू का भार उठाती रही है। और नींबू, पर्यावरण की दुहाई देकर सूली पर चढ़ जाता है। मुझे मालूम है आप कह सकते हैं मेरे अंदर संस्कार, संस्कृति और सभ्यता की भारी कमी है। यह आरोप सर्वथा

काट पर 'कट' - AAREY 2

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तुम कहाँ हो ग्रेटा थनबर्ग? हां, आपने सही समझा। मैं स्वीडन की उसी 16 साल की पर्यावरण एक्टिविस्ट के बारे में पूछ रहा हूं। ग्रेटा थनबर्ग, कहीं तुम जंगलों में तो नहीं घूम रही हो मल्टीकैम शूटिंग के लिए? डिस्कवरी की कोई फिल्म तो नहीं बना रही हो? पर, तुम्हारे लिए डिस्कवरी फिल्म क्यों बनाएगा भला। तुम जहाँ भी हो, जैसी भी हो, तुम्हें मेरी बात सुननी पड़ेगी। मुझे तुमसे शिकायत है। ‘How Dare You’ तुमने कह तो दिया, अब खामियाजा हम भुगत रहे हैं। तुम्हें नहीं मालूम था कि नेता चाहे विकसित देश के हों या फिर विकासशील देश के, उनका चरित्र एक ही होता है। सौम्य, शालीन और सेवापरक। नेता कैमरे पर भले ही गुस्सा कर जाएं, किसी को कुत्ते का पिल्ला कह जाएं, भला बुरा बोलने लगें पर आम ज़िंदगी में वैसा इंसान कोई दूसरा नहीं हो सकता। तुमने यूएन में नेताओं से क्यों कह दिया था कि “हम आप पर नज़र रखेंगे।” तुम तो बोलकर निकल लिए, यहाँ झेलना पड़ गया मुंबईकर को। सात समंदर पार से तुम किसी पर क्या नज़र रखोगी।  यहाँ हमारे देश में जो लोग किसी पर नज़र रखते हैं, उनको नज़रबंद कर जेल में डाल दिया जाता है।  हमारे देश में जोश में ल

ग्रैंड सेल का एयर प्युरीफाय़र और AAREY

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रात सोने के लिए होती है। आप क्यों जागेंगे भई? और जाग भी रहे हैं तो फिर इसके लिए थोड़े न जागते रहेंगे कि शहर में क्या-क्या गलत घट रहा है। और जो देख भी लिखा गलत घटते, तो पुलिस को बुलाने के लिए थोड़े न सड़क पर घूम रहे हैं। मस्ती के लिए अंधेर में सड़क पर निकले हैं, रंग में भंग कौन डालता है। रंग में भंग डाल भी दिया तो कुछ ऐतिहासिक काम करेंगे। है की नहीं? कोई रिपोर्टर नहीं हैं जनता है। वैसे रिपोर्टर भी तो रात के अंधेरे में ड्यूटी पर झपकी ले ही लेते होंगे। पुलिसवालों का रात में सोना मान्य है। दिनभर चालान काट-काटकर थक भी जाते होंगे बेचारे।  अंधेरे में सैकड़ों पेड़ों की हत्या कर दी गई और रातभर जागने वाली मायानगरी सोती रही। या मान लो जागकर सबकुछ अंदेखा करती रही। पेड़ कट गए तो कट गए। इसमे मुंबई के लोगों की कैसी ज़िम्मेदारी? भला दिनभर के थके हारे मुंबईकर भी कटे पेड़ की तरह ही बिस्तर पर गिरते हैं। बेचारे कुछ घंटे भी न सोएं तो काम कैसे करें। अगर आप यह सोच रहे हैं कि इसके लिए महाराष्ट्र की सरकार जिम्मेदार है तो फिर से आप गलती कर रहे हैं। भई, महाराष्ट्र में इसी महीने विधानसभा का चुनाव है। यह