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“कभी-कभी लगता है आपुन ही भगवान है”

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क्या गणेश गायतोंडे नहीं जानता था कि वक्त के समंदर में बड़े-बड़े सिकंदर डूब चुके हैं?  चौड़ी सड़क पर भाग रहा हूं मैं बेतहाशा। पीछे न जाने कौन-कौन सी एजेंसियां पड़ी है। हालांकि दौड़ाने के लिए एक ही एजेंसी काफी है। और भागते समय पहली और आखिरी कोशिश यही होती है कि किसी तरह बच जाएं। अचानक देखा, सामने से एक ट्रक आ रहा है। ट्रक और मेरे बीच एक फीट की दूरी रही होगी कि ज़ोर से कट की आवाज़ आई। लाइट्स ऑन हो गई। यह तो फिल्म का सेट है। सेट पर मौजूद लोगों ने तालियाँ बजाईं। एक टेक में बेहतरीन रिएक्शन देने के लिए डायरेक्टर ने आकर गले लगा लिया। मेरी नींद खुल गई। मुझे अफसोस हुआ। धत! नींद भी गलत समय पर टूटती है। थोड़ी और रह जाती तो उसका क्या चला जाता। लेकिन नहीं, माथे पर लिखा है, ज़िंदगी और पनौतियाँ एक साथ चलेंगी, तुम्हें जो उखाड़ना है उखाड़ लो। नींद टूटते ही मैं फिर से जिंदगी और पनौती की दोस्ती की जाल में फंस गया। सोचने लगा, क्या यह सच है कि ज़िंदगी और पनौतियाँ एक दूसरे की पूरक हैं? क्या ऐसा ही होता है ज्यादतर लोगों के साथ? कहीं ऐसा तो नहीं कि गिने-चुने भगवानों के बीच सवा सौ करोड़ से ज्याद