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सृजनात्मकताएं मृत्यु का प्रतिकार हैं

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उदय प्रकाश की कहानी ‘और अंत में प्रार्थना’ से गुजरते हुए एक बार फिर वही अहसास बड़ी सिद्धत से हो रहा है कि लेखक का एकांत किसी संन्यासी या संत का एकांत नहीं है। वह मृत्यु का एकांत है। यानी मृत्यु रचना की पूर्व शर्त है। मृत्यु के बाद ही रचना संभव होती है। कैंसर और मृत्यु के आसन्न आगमन को अतिक्रमित करने या उससे टकराने की इच्छा ही उदय प्रकाश की कविताओं और कहानियों का मूल उदगम स्रोत है। जिसे उदय प्रकाश ने लंबे अरसे तक भीतर-भीतर संजोए रखा होगा, वहीं इंस्टिंक्ट या संवेग इस कहानी में भी फूट पड़ता है। इन तमाम कहानियों में एक जो आतंरिक लय विद्यमान है उसे अब आसानी से पहचाना जा सकता है। वह जीवन जगत के जटिल अनुभवों को बिना किसी तारतम्य के कहानी में फिर से जीने की चेष्टा करते हैं। कई बार तो ऐसा भी लगता है कि उनकी सृजनात्मकता का जो कच्चा माल है वह कमोबेश हर कहीं चाहे वह कविता हो या कहानी उसी घुटन, पीड़ा और संत्रास को हराने की चेष्टा है। मेरी भी यही समझ है कि बिना किसी एक विशेष मनोदशा के कोई कालजयी रचना संभव भी नहीं होती। हां सालजयी रचनाओं को छोड़ ही दिया जाए। अंग्रेजी भ

जानकीपुल: सृजनात्मकताएं मृत्यु का प्रतिकार हैं

जानकीपुल: सृजनात्मकताएं मृत्यु का प्रतिकार हैं : पिछले 1 जनवरी को उदयप्रकाश 60 साल के हो गए. मुझे बहुत आश्चर्य है कि उनकी षष्ठिपूर्ति को लेकर किसी तरह की सुगबुगाहट हिंदी में नहीं हुई...