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खुली किताब: काश! ये साल न आता

खुली किताब: काश! ये साल न आता आज भी उसके घर में चूल्हा तो जलता है पर खाने की इच्छा किसी की नहीं होती। उसका 4 साल बेटा मां से रोज़ पूछता है---पापा कब आएगें? इतने दिन हो गए पापा, कहां चले गए? बताओ ने मम्मी पापा हमारे घर क्यों नहीं आते? इन सवालों का जवाब उसकी पत्नी के पास है ही नहीं। उसे समझ में नहीं आता कि बेटे को कैसे समझाए.....अब उसके प्यारे पापा कभी नहीं आएंगे। इन सवालों के जवाब में वो सिर्फ इतना ही कहती है काश! ये नया साल नहीं आता। नए साल से ठीक एक दिन पहले निरंजन की मौत हो गई। वजह बनी सड़क दुर्घटना। लेकिन असली वजह थी ज़िंदगी की जद्दोजहद। परिवार का पेट भरना। बेटे को पब्लिक स्कूल में पढ़ाने का और बीवी को उसकी मनपसंद चीजें दिलाने की ख्वाहिश। अपने घर की ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उसने लोन लेकर आईसक्रीम का ढेला खरीदा। दस हजार की पूंजी लगाकर आईसक्रीम बेचने का धंधा शुरू किया। पुलिस वालों को पैसा देकर इंडिया गेट के पास ढेला लगाया। वो रोज़ाना लगभग 300 रुपए तक की कमाई कर लेता था। लेकिन 31 दिसंबर की रात को ज्यादा से ज्यादा कमाई करने के चक्कर में जुटा रहा। चूंकि नए साल के जश्न में इंडिया