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मार्च, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सीरियल का सुनहरा दिन

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बात गए दिन सास-बहू और उनकी लड़ाई के। हिंदी सीरियल में नया ट्रेंड चल पड़ा है। सामाजिक कुरीतियों को नए सिरे से उजागर करने का। एक झटके में सात-आठ साल से चल रहे सास-बहू के सीरियल के दर्शकों में कमी आ गई। दर्शक को ऐसे सीरियल पकाऊ लगने लगे। दरअसल दर्शक बेहतर विकल्प की तलाश में थे। देश में टेलीविजन देखने वाले ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवार के दर्शक हैं। उन्हें बड़े और अमीर घरों के झगड़े तो शुरु में अच्छे लगे। सिर्फ इस वजह से मध्यवर्गीय परिवार के दर्शक ये जानना चाहते थे कि आखिर बड़े घराने के लोग किस कदर रहते हैं। उनकी दिनचर्या कैसी होती है। क्या उनके परिवार में कोई टकराव है या नहीं। क्या पैसे को लेकर उनमें आपस में खींचतान मचती है कि नहीं। हर इनटरटेंनमेंट चैनल पर छूआछूत की तरह ऐसे सीरियल चलने लगे। कई साल तक तो लोगों ने खूब चाव से देखा। पर एक तरह की चीज लंबे समय तक कोई नहीं झेलता। परिवर्तन शाश्वत सत्य है। टीवी दर्शक विकल्प की तलाश में थे। जैसे ही विकल्प मिला कि एक सिरे से तमाम सास-बहू के सीरियल धाराशायी हो गए। ज़ाहिर है इसका सारा श्रेय जाता है इंटरटेंनमेंट चैनल कलर्स को। कलर्स ने एक प्रयोग किया। उसन

संतन को कहां सीकरी सो काम...बिसर गए हरिनाम

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'शराब आत्मा और मन दोनों को खोखला कर देता है' ये उक्ति देश के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी के है। ऐसा नहीं कि वो सिर्फ कहने के लिए कोई भी बात कहते थे। बल्कि ज़िंदगी भर उन्होंने उसको निभाया भी। गांधी के सत्य के प्रयोग का यही अचूक हथियार था। इस वाकये को मैंने इसलिए याद नहीं किया क्योंकि मैं गांधी पर कोई लेख लिखना चाह रहा हूं। मैं गांधी के विचारों से लंबे समय से सहमत रहा हूं और बहुत हद तक उन्हें मानने की कोशिश भी करता रहा हूं। गांधी के सामान को लेकर पिछले दिनों जो छिछालेदर हुई उससे मेरा मन काफी आहत हुआ। मैं बड़ा परेशान रहा हूं। पहले तो सामान की नीलामी का पूरा ड्रामा। और फिर एक और बड़े ड्रामे के तहत शराब बेचने वाले विजय माल्या का सामान खरीदना। विजय माल्या चाहे कितान ही बड़ा आदमी क्यों न हो...गांधी के सामने बहुत छोटा है। उसके पास करोड़ों अरबों रुपए क्यों न हो..गांधी के सामने बहुत गरीब है। लेकिन दुर्भाग्य, आंधी ऐसी चल रही है कि देश की सरकार को इसकी अहमियत समझ में नहीं आती। केंद्र सरकार को भी पैसे वालों की चमचागीरी में मजा आता है। सरकार के पास 10 करोड़ रुपए नहीं थे कि वो गांधी के स