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मार्च 4, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
अस्सी घाट का बांसुरी वाला: क्रांति का पाञ्चजन्य सच्चे अनुभवों की सच्ची अनुभूति ही कविता है। हर सच्ची कविता अपने समय और समाज में पसरी असमानता और शोषण का विरोध करती है। हम जिस बिडंवनाग्रस्त समाज में सांस ले रहे हैं उसमें अंतर्विरोध और विकृतियां बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में सह्दय समाज की प्रतिबद्धता और बढ जाती है। तजेन्दर लूथरा की क्रांति का पाञ्चजन्य संघर्ष की एक नई ज़मीन तैयार करती हैं। फिर उसे यूं ही नहीं छोड़ती बल्कि प्रतिरोध का बीज भी बो कर आती हैं। यही इन कविताओं की सच्चाई भी है। सत्ता और तंत्र के तिलिस्म को तोड़ने के लिए इनका सृजन समय और समाज में दबे छिपे चुप पड़े आत्महनन पर उतारु मध्यमवर्गीय समाज का सारा सच उगल देती हैं। क्रांति का आह्वान करती ये कविताएं उसी बांसुरीवाले के हैं जो लगभग प्रत्येक कविता एक आंतरिक धुन समेटे हुए है....जीत भले न पाऊं पर चलूंगा लेकिन/ कोशिश करूंगा लेकिन....‘’अस्सी घाट का बांसुरीवाला” कविता प्याज की परतों सी और अधिक अर्थवती होकर खुलती है। इसकी पहली ही पंक्ति से जाहिर है कि मात्र कविताई करना तेजेंदर का उदेश्य नहीं। कविता के माध्यम से ऊबड़ खाबड़ व्यवस्था में क्