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बहुत कुछ #बचा है , इस ऊब #उकताहट के बीच बहुत सी #आत्मरति , बहुत से #शोकगीत मधुमक्खी के छत्ते सी फैली है #लाचारी #रेगिस्तानी भूख प्यास और दिमागी #बीमारी #मटमैली आँखें ,#खुरदुरी हथेली भीतरी #दरारें ,बाहरी #दीवारें बहुत से भद्दे #मज़ाक , भितरघात ... #बदहवास रातें , सडती #गंधाती आस #हाएना संततियों की #जंग लगी सोच इस मुर्दा #संस्कृति की देगी गवाही .... क्या अब भी आप कहेंगे // बहुत कुछ #बचा है इस ऊब उकताहट के बीच ... @सुधा उपाध्याय
वक्त तेजी से फिसल रहा है और हालात जस के तस बने हैं. ज़िंदगी की छोर पकड़ो तो वक्त उघार हो जाता है. और जब वक्त की तरफ से ज़िंदगी की चादर को पकड़ो तो हालात अपनी जगह से हिलने का नाम नहीं ले रहे हैं. इस कशमकश में ज़िंदगी का कोई न कोई कोना बदरंग होता जा रहा है.