ग्रैंड सेल का एयर प्युरीफाय़र और AAREY



रात सोने के लिए होती है। आप क्यों जागेंगे भई? और जाग भी रहे हैं तो फिर इसके लिए थोड़े न जागते रहेंगे कि शहर में क्या-क्या गलत घट रहा है। और जो देख भी लिखा गलत घटते, तो पुलिस को बुलाने के लिए थोड़े न सड़क पर घूम रहे हैं। मस्ती के लिए अंधेर में सड़क पर निकले हैं, रंग में भंग कौन डालता है। रंग में भंग डाल भी दिया तो कुछ ऐतिहासिक काम करेंगे। है की नहीं? कोई रिपोर्टर नहीं हैं जनता है। वैसे रिपोर्टर भी तो रात के अंधेरे में ड्यूटी पर झपकी ले ही लेते होंगे। पुलिसवालों का रात में सोना मान्य है। दिनभर चालान काट-काटकर थक भी जाते होंगे बेचारे। 

अंधेरे में सैकड़ों पेड़ों की हत्या कर दी गई और रातभर जागने वाली मायानगरी सोती रही। या मान लो जागकर सबकुछ अंदेखा करती रही। पेड़ कट गए तो कट गए। इसमे मुंबई के लोगों की कैसी ज़िम्मेदारी? भला दिनभर के थके हारे मुंबईकर भी कटे पेड़ की तरह ही बिस्तर पर गिरते हैं। बेचारे कुछ घंटे भी न सोएं तो काम कैसे करें। अगर आप यह सोच रहे हैं कि इसके लिए महाराष्ट्र की सरकार जिम्मेदार है तो फिर से आप गलती कर रहे हैं। भई, महाराष्ट्र में इसी महीने विधानसभा का चुनाव है। यहाँ के नेता अपनी सीट बचाने के लिए दिन-रात एक कर रहे हैं और आपको आरे इलाके के सैकड़ों कटे पेड़ों की पड़ी है। आप समझते क्यों नहीं है कि चुनाव लड़ने के लिए बहुत ज्यादा पैसों की ज़रूरत पड़ती है। उसके लिए पैसों के पेड़ तो काटने ही पड़ेंगे। सुना है पैसे पेड़ पर ही फलते हैं। अब आप समझने को तैयार ही नहीं हैं तो क्या कहें। लानत है आप पे। आप अपने नेताओं को नहीं समझते, तो इसमें आपका दोष है। नेता तो जादूगर होते हैं। यही कारण है कि इस देश की जनता हमेशा नेताओं की जादुई ऊंगलियों में फंस जाती है। हालांकि देश के बड़े नेता कई बार आपकी बेवकुफियों से नाराज़ भी हो जाते हैं। वो कहते हैं जनता सही समय में गलत चीज़ सोचती है। जनता क्या सोचे, कैसे सोचे, इसके लिए बड़े-बड़े इवेंट होते तो हैं। और क्या चाहिए आपको। टीवी पर देखते हैं न आप? नहीं देखते हैं? ओह! टीवी देखा कीजिए भई। रोज़गार में इतना मत मशगूल रहिए। यहां बेरोज़गार दर दर की ठोकरें खा रहे हैं और आप काम कर रहे हैं? ईडी को नहीं जानते हैं क्या? मनी लाँड्रिंग  का एक केस बनाया तब समझ में आएगा आपको। बचकर रहिए। पैसा कमाना, व्यापार बढ़ाना आपके जिम्मे नहीं है। उसके लिए अलग तरह के लोग हैं पहले से। 

खैर, अगर आप सैकड़ों पेड़ों की हत्या के लिए विश्व के सबसे प्रसिद्ध नेता को ज़िम्मेदार मान रहे हैं तब तो आप दुनिया की सबसे बड़ी गलती कर रहे हैं। इतिहास आपको माफ कर दे तो कर दे, देश की जनता माफ नहीं करेगी। मान लीजिए, अगर जनता ने भी आपको माफ कर दिया तब तो भीड़ से सामना होना तय है। आप जानते हैं, इन दिनों भीड़ कितनी सभ्य और सुसंस्कृत होती चली जा रही है। वैसे भी आप भूल गए क्या? अभी हाल ही में तो विश्व के सबसे प्रसिद्ध नेता ने अमरीका को न्यू इंडिया बना दिया है। इसी अमरीकी यात्रा के दौरान उन्होंने पर्यावरण से जुड़ी गहरी से अत्यंत गहरी चिंता जताई है। कितना कुछ तो कहा है उन्होंने, पर्यावरण को बचाने के लिए। और आप जान लीजिए, पर्यावरण को लेकर उनकी चिंता आज की नहीं है। अगर आपको अब भी यकीन नहीं आ रहा है तो आप डिस्कवरी चैनल पर दिखाई गई जंगल यात्रा के दौरान की गई बातचीत में पर्यावरण को तलाश सकते हैं। 

सिर्फ तलाश करने के लिए कह रहा हूँ। देखिए और गदगद रहिए। गलती से पत्र मत लिख दीजिएगा। देशद्रोही जैसे कुछ तमगे फ्री में आपके नाम के साथ जुड़ जाएंगे। याद रखिएगा, न तो सुप्रीम कोर्ट आपके लिए खड़ा होगा और न ही जज को साक्ष्य नज़र आएगा। तरस खाना तो कोर्ट की परिभाषा में आता ही नहीं है। खाने को वैसे भी बहुत कुछ है इस देश में। अदालतों के पास वैसे भी जज कम हैं और केस बहुत-बहुत ज्यादा। काम का प्रेशर ऊपर से। प्रेशर के साथ-साथ कोर्ट के पास हमेशा से एक और चीज़ है और वो है काट। काट का हाल तो यह है कि बेचारा पहलू खान वीडियो में अब भी तड़प-तड़प कर मर रहा है रोज़। पर कोर्ट को इसमें कुछ भी नहीं दिखता। सच तो यह है कि आरे इलाके में पेड़ों की हत्या का मामला रात का है। रात में तो हाथ को हाथ नहीं दिखता। पेड़ कहाँ दिखेंगे। हां, पर मुगालते में मत रहिए। कोर्ट में दिन में भी अपराधी का हाथ नहीं दिखता। बड़ी मुश्तैदी से अपराधी का लंबा हाथ लंबी कुर्सी तक जाता है और बलात्कार पीड़िता सलाखों के पीछे चली जाती है। 

कोई सलाखों के पीछे जाए तो जाए। अपन को क्या करना है। पर एक बात अपन को अब भी समझ नहीं आ रही। बालाकोट में कुछ ही पेड़ गिरे तो दुनियाभर के लोगों ने हो हल्ला किया। तब तो लोग रोज़ हल्ला हंगामा करके बम पर बम गिराए जा रहे थे, आरे में सैकड़ों पेड़ गिरे तब वो कहाँ चले गए? कहीं ऐसा तो नहीं कि पेड़ पेड़ पर लिखा है हल्ला करने वालों का नाम। बम से याद आया। लगता है बात-बात में संसद में बम बरसाने वाले विमान से बम गिराने वाले राजकुमार नेता के बम खत्म हो गए। हाँ भई, पेड़ ही तो है। क्या फर्क पड़ता है। कम से कम मेट्रो रेल तो चलने लगेगी। विकास की नई परिभाषा में पर्यावरण को बचाए रखना, चिंता का ‘विषय’ हो सकता है, ‘ज़रूरत’ नहीं। 

सहसा मुझे भी लगा, हटाओ यार। जब किसी को चिंता नहीं तो फिर अपन क्यों मरी भैंस की पूंछ फाड़ें। सामने अच्छा खाना रखा है पर मैं पर्यावरण को विषय से ज़रूरत में बदलने में लगा हूं। अभी रोटी तोड़ी ही थी कि बीवी ने आवाज़ लगाते हुए किचेन से पूछा—पनीर की सब्ज़ी कैसी बनी है? मैं कुछ बोलता उससे पहले ही उसने फिर से कहा—कम से कम भ्रम रखने के लिए ही कभी अच्छा कह दिया करो। मैंने जल्दबाजी में कहा—अरे! अच्छा बना है भई। और सुनो, भ्रम में नेता रखते हैं मेरे जैसा आदमी इस खाने को खाकर क्या किसी को भ्रम में रखेगा।

ठीक इसी समय अमेजन के डिलीवरी ब्वॉय ने दरवाज़े पर लगी घंटी बजाई। दरवाज़ा खोलते ही उसने कहा- सर, आपने ग्रैंड सेल में जो सामान मंगवाया था वही लेकर आया हूं। मेरे मुंह से सहसा निकला, एयर प्युरीफायर आ गया? मामूली औपचारिकता करते दौरान मैंने मज़ाक में उससे पूछा—एयर प्युरीफायर से हवा शुद्ध हो तो जाएगी न? डिलीवरी वाले ने थूक की तरह अजीब सी हंसी मेरे मुंह पर फेंकते हुए कहा—सर, ये है तो मशीन ही न। 

तस्वीर सौजन्य-एनडीटीवी डॉट कॉम


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