मेरे लाड़ले को चिकोटी क्यों काटी ?





मेरे लाड़ले को चिकोटी काटी तो लोग अब खामियाज़ा भुगतो। यह मैं नहीं कह रहा हूँ। यह अप्पा कह रहे हैं स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा से। कुणाल ने भी हिम्मत जुटाकर लाड़ले को ही चुना। लगता है कुणाल ने लाड़ले के पिछवाड़े में पूरी ताकत से दाँत गड़ा दिया है। भई, जब बैठने में दर्द होगा, बिस्तर पर करवट लेने में लाड़ला कराहेगा, तो अप्पा को तकलीफ तो होगी ही। अप्पा से कैसे देखा जाएगा ये सब। 

लाड़ला, अप्पा के लिए दिन-रात नहीं देखता। सारी दुनिया की गालियाँ सुनने के बाद भी उनके समर्थन में खड़ा रहता है। अपने प्रोफेशन में घटिया साबित हुआ, पर अप्पा के लिए मन में इज्जत बरकरार रही। टस से मस नहीं हुआ। पता नहीं अप्पा और लाड़ला के बीच कोई अनकहा रिश्ता है या फिर रुहानी। जो भी हो अब अप्पा की बारी है। सो कर दिया। 

अप्पा समय-समय पर कमाल करते रहते हैं। दुनिया जाए भांड में पर जो अपने हैं, सगे हैं, सहोदर हैं, उनके लिए अप्पा लुंगी खोलकर नाचते हैं। जब अप्पा नाचने लगते हैं तो फिर उनके चाहने वाले भक्ति में नंगा होकर नाचने लगते हैं। भक्ति में कहा ध्यान रहता है कपड़ों का। जो जितना खुलकर नाचता है, अप्पा उसको उतनी ही इज्जत से नवाजते हैं। 

कुणाल को भारतीय रेल का सहारा है। आसमान में उड़ने पर अप्पा ने रोक लगा दी है। अप्पा ने इशारा किया और सारे पंछियों ने कुणाल को अपने डैने पर बिठाने से इनकार कर दिया। अप्पा लोकतंत्र की मर्यादा को हद से ज्यादा समझते हैं। इसलिए लोक पर तंत्र को भारी कर दिया। अब लोक दबा जा रहा है तंत्र के नीचे। सब अप्पा की महिमा है। लाड़ला भी तंत्र का हिस्सा है। अप्पा का लाड़ला जो ठहरा। वो भी बार-बार औकात दिखा देने की धमकी देता रहता है। लाड़ला भी अप्पा जैसी ज़ुबान बोलता है। अहंकार के चरम पर बैठकर वो लोक को ठेंगे पर रखता है। अरे! भाई, अप्पा के पास तंत्र है न। लाड़ला तो महज लाड़ला है। पर वो भी परम अहंकार की शक्ति में लिप्त है। लेकिन उससे क्या। लाड़ला जब नंगा नाच करता है तब चाहे जो भी हो जाए, अप्पा गुमसुम रहता है और अट्टाहास करता है। 

कुणाल कामरा के साथ दिक्कत यह थी कि वो भी ‘मन की बात’ करने लगे। जबकि ऐसा करना क़ानून का उल्लंघन है। इसकी इजाज़त सबको नहीं है। लाड़ले को तो इसकी इजाज़त है पर कुणाल को नहीं। लेकिन कुणाल को कौन समझाए। कुणाल को लगा, जनता का फर्ज़ है सवाल पूछना। सो पूछ डाला। सवाल पूछने का काम अबतक लाड़ला करता था, अचानक उससे उसका अधिकार छिन जाएगा तो दिक्कत तो होगी ही। बस कुणाल ने लाड़ले की पूँछ पर पैर रख दिया। 

कुणाल देश की जनता हैं। जब देश मुश्किल घड़ी में हो तो पूँछ पर पैर रखने का काम चौथे खंभे का होता है। लेकिन चौथा खंभा जब लाड़ला बन जाए तो जनता कुछ न कुछ तो करेगी। बेचारा कुणाल।  

कुणाल के अधिकारों को छीनकर अप्पा ने जो कादो मचाया है इससे समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि दिक्कत और बढ़ेगी। अप्पा की ही देन है लोग सरेआम, सरेराह सवाल पूछें। यह सिलसिला और बढ़ न जाए। जनता, अप्पा के दूसरे लाड़लों को भी आड़े हाथो न ले ले।  

तस्वीर साभार-द क्विंट


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