पानी पर पंगा...?(ये भी कोई बवाल करने की बात है?)



मैं ड्राइमरूम में बैठा हूँ। कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन अपने लेखन पर एकाग्रचित नहीं हो पा रहा हूँ। वजह है, बीस लीटर पानी की बोतल सप्लाई करने वाले अशोक मल्होत्रा और मेरे पड़ोसी के बीच हो रही बहस। पड़ोसी, पानी की बोतल की बढ़ी हुई कीमत देने को तैयार नहीं है और अशोक मल्होत्रा बार-बार यह समझाने की कोशिश कर रहा है कि इसमें उसकी क्या गलती है। यह कीमत न तो वो तय करता है न ही बढ़ी हुई रकम उसकी जेब में जाने वाली है। बीस लीटर पानी की बोलत की कीमत में एकदम से दस रुपए की बढ़ोतरी हो गई है। पड़ोसी का कहना था कि दस रुपए बढ़ने का मतलब हुआ, अब बोतल बीस लीटर की नहीं बल्कि इक्कीस लीटर की हो गई। पर पानी सिर्फ बीस लीटर है। 

मैं इन दोनों की बातें सुन सुनकर पकने लगा था तभी ट्विटर के एक लिंक पर मेरी नज़र पड़ी। इस लिंक में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2018 के आंकड़ों का ज़िक्र किया गया था। पर इसमें सबसे चौंकाने वाले आंकड़े थे, पानी को लेकर हुई हत्याओं के। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2018 में कुल 29,017 हत्याएं हुईं। यानी हर दिन 80 लोगों की मौत। इनमें पानी को लेकर साल भर में 92 की हत्याएं हुईं। इनमें सबसे ज्यादा 18 हत्याएं गुजरात में पानी की वजह से हुई। 

मैं देखकर दंग रह गया कि ऐसी बातें मीडिया में क्यों नहीं आती? ऐसी खबरें क्यों नहीं हेडलाइन में अपनी जगह बना पाती हैं? ऐसी खबरों पर सरकारें क्यों नहीं बनती और गिरती हैं? ऐसी बातों को लेकर सारी राजनीतिक पार्टियाँ आपस में तू-तू मैं-मैं क्यों नहीं करतीं? क्या इस देश में सिर्फ सांप्रदायिक मुद्दे ही बच गए हैं, आपसी बहस के लिए? फिर लगा, मेरे सवालों से किसको फर्क पड़ता है। इतना संवेदनशील कौन है यहाँ, जो पानी को लेकर की गई हत्याओं को गंभीरता से ले और इसको दूर करने के उपाय सोचे।   

देश के जिस नियंत्रक और लेखा महानिरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पर सरकारें बनती और गिरती रही हैं उसी सीएजी के अनुसार सरकारी योजनाएँ प्रतिदिन प्रति व्यक्ति चार बालटी स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के निर्धारित लक्ष्य का आधा भी आपूर्ति करने में सफल नहीं हो पायी हैं। आज़ादी के 70 वर्षों के बाद, आज भी देश के 75 प्रतिशत घरों में पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। वाटर एड नामक संस्था द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में पानी की कमी से जूझती सबसे अधिक आबादी भारत वर्ष में ही है। यहाँ की जनता साल भर में किसी न किसी समय पर, पानी की कमी से जूझती नज़र आती है। इस समय हमारा देश पानी की कमी के सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है।

यकीन नहीं होता है तो इन आइए निम्न लिखित कुछ अन्य आँकड़ों पर भी ज़रा एक नज़र डालें, जो देश में जल की कमी के बारे में स्थिति स्पष्ट करती है: 

(1) पिछले 70 सालों में देश में 20 लाख कुएँ, पोखर एवं झीलें ख़त्म हो चुके हैं।
(2) पिछले 10 सालों में देश की 30 प्रतिशत नदियाँ सूख गई हैं।
(3) देश के 54 प्रतिशत हिस्से का भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है।
(4) एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक देश के 40 प्रतिशत लोगों को पानी नहीं मिल पाएगा।
(5) नई दिल्ली सहित देश के 21 शहरों में पानी ख़त्म होने के कगार पर है। चेन्नई में तो हालात पिछले वर्ष बदतर हो चुके हैं।
(6) आज देश के कुल 91 जलाशयों में से 62 जलाशयों में 80 प्रतिशत अथवा इससे कम पानी बचा है। किसी भी जलाशय में यदि लम्बी अवधि औसत के 90 प्रतिशत से कम पानी रह जाता है तो इस जलाशय को पानी की कमी वाले जलाशय में शामिल कर लिया जाता है और यहाँ से पानी की निकासी कम कर दी जाती है। 

देश में हर साल औसतन 110 सेंटी मीटर बारिश होती है और बारिश के केवल 8 फीसदी पानी का ही संचय हो पाता है। बाक़ी 92 प्रतिशत पानी बेकार चला जाता है। इसलिए देश में शहरी एवं ग्रामीण इलाक़ों में भूजल का उपयोग कर पानी की पूर्ति की जा रही है। भूजल का उपयोग इतनी बेदर्दी से किया जा रहा है कि आज देश के कई भागों में हालात इतने ख़राब हो चुके हैं कि 500 फ़ुट तक ज़मीन खोदने के बाद भी ज़मीन से पानी नहीं निकल पा रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में उपयोग किए जा रहे भूजल का 24 प्रतिशत हिस्सा केवल भारत में ही उपयोग हो रहा है। यह अमेरिका एवं चीन दोनों देशों द्वारा मिलाकर उपयोग किए जा रहे भूजल से भी अधिक है।

हालांकि ये बात सच है कि धरती की सतह पर 70 फ़ीसदी हिस्से में पानी भरा हुआ है, लेकिन ये समुद्री पानी है, जो खारा है। दुनिया में मीठा पानी केवल 3 फ़ीसदी है और ये इतना सुलभ नहीं है। दुनिया में सौ करोड़ अधिक लोगों को पीने का साफ़ पानी उपलब्ध नहीं है। जबकि 270 करोड़ लोगों को साल में एक महीने पीने का पानी नहीं मिलता। साल 2014 में दुनिया के 500 बड़े शहरों में हुई एक जांच में पाया गया है कि एक अनुमान के अनुसार हर चार में से एक नगरपालिका 'पानी की कमी' की समस्या का सामना कर रही है। 

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 'पानी की कमी' तब होती है जब पानी की सालाना सप्लाई प्रति व्यक्ति 1700 क्युबिक मीटर से कम हो जाती है. संयुक्त राष्ट्र समर्थित विशेषज्ञों के आकलन के अनुसार साल 2030 तक वैश्विक स्तर पर पीने के पानी की मांग सप्लाई से 40 फ़ीसदी अधिक हो जाएगी.
इसके कारण होंगे- जलवायु परिवर्तन, विकास करने की इंसानों की होड़ और जनसंख्या में वृद्धि.
इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इस बढ़ते संकट का सामना करने वाला पहला शहर दक्षिण अफ्रीका का केपटाउन है।


पानी की इतनी बड़ी समस्या को लेकर मैं जूझ रहा था कि तभी अचानक बाहर से मारपीट की आवाज़ें आने लगी। पड़ोसी ने अशोक मल्होत्रा को थप्पड़ मार दिया। अशोक मल्होत्रा चीखने लगा। मुझे लगा, अब तो बाहर जाना ही पड़ेगा। वरना पड़ोसी, मेरे ऊपर आरोप लगाएंगे कि जेएनयू और जामिया में छात्रों पर हो रहे ज़ुल्म पर तो बहुत बोलता हूं, पानी की बढ़ती कीमत पर क्यों नहीं कुछ कहा। बाहर जाकर मैं चुपचाप खड़ा हो गया। हिंसा का समर्थन मेरे बस में नहीं है। हिंसा चाहे, नक्सली करें या फिर दिल्ली पुलिस। पानी पर पंगा, जब दिल्ली जैसे महानगर में हिंसक होता जा रहा है तो फिर ग्रामीण इलाकों में क्या होगा, सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। 

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