क्या अन्ना भुला दिए गए?


लंबे अरसे से मेरे जेहन में एक सवाल है....क्या अन्ना भुला दिए गए? क्या अन्ना का आंदोलन हाशिए पर चला गया? संभवत: आपके मन में भी ऐसे सवाल उठते होंगे....ध्यान रहे मुझे वो बातें सोचने पर मजबूर नहीं करतीं जो सरकार ने किया...
यूपीए सरकार ने जिस तरह से अन्ना के आंदोलन को कुचल दिया वो हैरत में नहीं डालता। सरकार खुद को बनाए रखने के लिए हर वो काम करेगी जिससे उसे सांस मिले। सिब्बल, चिदंबरम और सलमान खुर्शीद जैसे शकुनी मामाओं ने जो भी चालें चलीं, जो भी समीकरण बनाए उसके लिए भी हैरानी नहीं होनी चाहिए। आखिर वो इन्हीं बातों की बदौलत जीवित हैं...यह भी कहना सरासर लगत है कि सोनिया जी इन बातों से अनजान हैं या रही हैं...लेकिन हर बार की तरह इस बार सोनिया गांधी ने भी उस तरह से बातों पर काबू नहीं पा सकीं जैसे पहले करती रही हैं....बीजेपी ने जिस तरह से अन्ना और उनके सहयोगियों की पीठ में खंजर भोंका वो भी विचलित नहीं करता। 10 जनपथ के भोंपू,खुद को कुशाग्र बुद्धि समझने वाले और राजनीति करियर में विफलता की तरफ अग्रसर दिग्विजय सिंह के अन्ना विरोधी एजेंडे ने भी ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे अन्ना का आंदोलन हाशिए पर चला जाए...एक दिग्विजय सिंह अन्ना का कुछ नहीं बिगाड़ सकते...वो दिग्विजय सिंह जिसने खुद दस साल मध्य प्रदेश में शासन किया और लोगों का जीवन बद से बदतर होता गया...

तो फिर विचलित क्या करती है? क्या कोई ऐसी बात है जिसे सोचकर आप विचलित होते हैं? अन्ना आंदोलन से जुड़ी कोई ऐसी बात पर आपका ध्यान जाता है जिसे सोचकर आप परेशान हो उठते हैं और आपके मन में सवालों का क्रम बनने लगता है...कुछ तो होगा...

कहीं ऐसा तो नहीं कि अन्ना के आंदोलन को देश से जोड़ने वाली कोई कड़ी अब गायब है? आखिर वो क्या कड़ी थी जिससे हम आप और अन्ना एक सूत्र में बंधे थे? कुछ तो ऐसा जरूर है जो सीधे तौर पर कोई नहीं कहता। आखिर अन्ना ने जनलोकपाल बिल की लड़ाई को आधे में छोड़कर हार क्यों मान ली? क्या अन्ना सिर्फ सरकार से हार गए या फिर उन्हें हराने वाला कोई और भी है? अचानक ऐसा क्या हुआ कि मुंबई में प्रस्तावित तीन दिन के अनशन को महज दो दिन में ही खत्म करना पड़ा?

क्या है इसके पीछे? बात करेंगे अगले अंक में....आप भी सोचिए और मन में जो विचार आते हैं उसे साझा कीजिए?

टिप्पणियाँ

Dasarath Singh ने कहा…
नमस्कार ,बहोत बढिया

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