हुसैन और तसलीमा में फर्क़

मकबूल फिदा हुसैन कलाकार हैं। तसलीमा नसरीन भी कलाकार हैं। हुसैन का जन्म भी मुस्लिम परिवार में और तसलीमा का भी मुस्लिम परिवार में जन्म। लेकिन हुसैन साहब भारत को अलविदा कह गए और तसलीमा भारत को अपना दूसरा घर मानती हैं। दोनों में भारत को लेकर जो नजरिया है उसमें आसमान ज़मीन का अंतर है। दोनों में सबसे बड़ा मानसिकता का है। हुसैन के लिए अगर कोई ये कहता है कि कलाकार को आज़ादी मिलनी चाहिए और उसे उसकी इच्छाशक्ति के आधार पर काम करने देना चाहिए। इस तर्क से मैं कतई सहमत हूं। जाहिर है अगर कलाकार प्रगतिशील है तो वो समाज और समय को कुछ ऐसा देने की कोशिश करेगा, जिससे आम जनता को भी फायदा हो। हुसैन कितने प्रगतिशील रहे हैं ये तो शायद वही जानते होंगे पर अकसर जब वो हिंदू देवियों के जिस्म को अपनी तस्वीर में जगह देते हैं तो उनके कपड़े उतरने लगते हैं। याद रहे हुसैन ने शायद ही कभी किसी और धर्म के साथ खिलवाड़ किया हो। मुस्लिम धर्म से खिलवाड़ की तो उनकी हिम्मत ही नहीं। उन्हें पता है अगर वो ऐसा करेंगे तो मोटे पैसे वाले गल्फ देशों के शेख उनकी तस्वीरों की मुंह मांगी कीमत कैसे देंगे। जाहिर है हुसैन पहले मधुबाला और बाद में माधुरी की सुंदरता पर ऐसे ही नहीं मर मिटते रहे। कलाकार सुंदरता का पुजारी है..माना। पर एक खास धर्म को लगातार नंगा करने की आदत सोची समझी साजिश है। मैं खुद प्रगतिशील हूं। पर हुसैन का भारत छोड़ना मुझे कतई गलत नहीं लगा। न ही मैं हुसैन के समर्थन में आवाज उठाउंगा। हालांकि मेरी आवाज उठाने से क्या फर्क पड़ेगा पर वैचारिक तौर पर हुसैन का समर्थन अब नहीं। दरअसल हुसैन को इस उम्र में भी पैसे की ललक ज्यादा है। मैं सवाल पूछता हूं---क्या अमिताभ बच्चन के खिलाफ राज ठाकरे ने आंदलोन किया तो उन्होंने मुंबई छोड़ने का फैसला कर लिया? क्या शाहरुख खान के बयान के बाद शिवसेना ने इतना बवाल किया तो क्या शाहरुख ने मन्नत छोड़ दिया और दुबई जाकर बस गए? जब सुप्रीम कोर्ट ने हुसैन को पूरी सुरक्षा देने का वादा किया तो फिर वो भारत क्यों नहीं लौटे? ये सारे ऐसे सवाल हैं जिसका हुसैन के पास कोई जवाब नहीं है। हाल ही में एनडीटीवी 24x7 पर बरखा दत्त के साथ इंटरव्यू में हुसैन ने कहा कि वो बड़ा काम करना चाहते थे। उसके लिए स्पांसर मिल गया। कतर के लिए अरब सभ्यता पर चित्रकला बनाने का काट्रैक्ट मिल गया। किसी स्पांसर के लिए भारतीय सभ्यता की तस्वीरें किसी दूसरे के लिए बॉलीवुड पर तस्वीरें बनाएंगे। गौरतलब है कि कुछ समय पहले हुसैन साहब के बेटे ने एक साक्षात्कार में कहा था कि आर्थिक दृष्टि से हुसैन साहब को भारत से ज्यादा विदेशों में लाभ है। भारत में उनकी करोड़ो रुपए की महंगी कलाकृतियों को खरीदने की क्षमता वाले मॉर्डन आर्ट के प्रशंसकों की संख्या काफी कम है जबकि विदेशों में इन कलाकृतियों की कीमत भी ज्यादा लगती है और मांग भी ज्यादा है।

अब जरा तसलीमा नसरीन को देखिए। तसलीमा ने हुसैन के लिए लिखा है---"हुसैन के सरस्वती की नंगी तस्वीर बनाने को लेकर भारत में विवाद शुरु हुआ तो मैं स्वाभाविक तौर पर चित्रकार की स्वाधीनता के पक्ष में थी। मुसलमानों में नास्तिकों की तादाद बहुत कम है। मैंने हुसैन के चित्रों को हर जगह से खोजकर देखने की कोशिश की कि हिंदू धर्म के अलावा किसी और धर्म, खासकर अपने धर्म इस्लाम को लेकर उन्होंने कोई व्यंग्य किया है या नहीं। लेकिन देखा कि बिलकुल नहीं किया है। बल्कि वे कैनवास पर अरबी में शब्दश: अल्लाह लिखते हैं। मैंने यह भी स्पष्ट रुप से देखा है उनमें इस्लाम के प्रति अगाध श्रद्धा और विश्वास है। इस्लाम के अलावा वे किसी दूसरे धर्म में विश्वास नहीं करते। क्या वे मोहम्मद साहब को नंगा चित्रित कर सकते हैं? (जनसत्ता, 28 फरवरी 2010)
जाहिर है तसलीमा के इस वक्तव्य से साफ है कि हुसैन को कतर में कोई दिक्कत क्यों नहीं होगी। आप बताएं दोनों बड़ा कौन है? तसलीमा हर हाल में ज्यादा हुसैन से बहुत ज्यादा प्रगतिशील है। मैं इसलिए नहीं कह रहा क्योंकि वो हमारी संवेदनाओं में स्वर मिला रही है। बल्कि इस लिए कि वो कला को समाज का दर्पण मानती है। हुसैन की तरह नहीं जो ये मानते हैं कि कला समाज के लिए नहीं, बल्कि समाज कला के लिए होता है।
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// kriti upadhyaya. (hope u remember me !!)