सबसे बड़ा सच---'झूठ'



हम जिस दौर में जी रहे हैं वहां सबसे बड़ा सच है 'झूठ'। जो जितनी चालाकी से झूठ बोलता है, जो अपने ग़लत कारनामों को आसानी से छुपा सके--वो ही है आज की सबसे बड़ी जीत। राहुल राज का एनकाउंटर नहीं हुआ उसकी हत्या की गई--ये कोई और नहीं बल्कि फॉरेंसिक एक्सपर्ट कह रहे हैं। मुंबई के जे जे अस्पताल के फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टरों ने साफ-साफ कहा है कि उसे दो फीट की दूरी से गोली मारी गई है। क्योंकि उसके चेहरे पर गन पाउडर और काले धब्बे मौजूद हैं। ज़ाहिर है उसे पहले पकड़ा गया है फिर उससे बात की गई है उसके बाद उसकी हत्या की गई है। राज ठाकरे को कोई लाख गालियां दे ले पर ये मानना होगा कि पूरा सिस्टम राज ठाकरे का साथ दे रहा है। देशमुख सरकार तो मानों राज की दलाली में जुटा है। चूंकि कई राज्यों में चुनाव नजदीक है इसलिए केंद्र सरकार देशमुख सरकार को नहीं लताड़ रही है। लेकिन सच तो यही है जिसे लगातार झुठलाया जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार लगातार राज ठाकरे को सुरक्षित बनाने में जुटी है। केंद्र सरकार ईसाईयों के हमले पर अगर उड़ीसा और कर्नाटक सरकार को राष्ट्रपति शासन लगाने की धमकी दे सकती है तो फिर महाराष्ट्र में क्यों नहीं। राज्य सरकार से राज ठाकरे काबू में नहीं आ रहा है तो फिर वहां केंद्र अपना चाबुक क्यों नहीं चला रहा है। बात सिर्फ इतनी सी है कि केंद्र को भी लगता है कि अगली बार महाराष्ट्र चुनाव में मराठियों से किस एवज में कांग्रेस वाले वोट मांगेंगे। बीजेपी तो धीरे से बाल ठाकरे को आगे करके मराठियों का मुद्दा भुना लेगी पर कांग्रेस क्या करेगी।


राहुल राज का एनकाउंटर लोकतांत्रिक देश में एक ऐसा सच है जिसे न सिर्फ एक घिनौनी घटना के रूप में याद किया जाएगा अपितु राजनीतिक के निचले स्तर पर गिरे नेताओं के लिए भी याद किया जाएगा। वर्तमान रेल मंत्री लालू यादव राज ठाकरे से किसी सूरत में कम नहीं है। राहुल राज एनकाउंटर को उन्होंने एक संवेदनात्मक घटना नहीं बल्कि उसे राजनीति का एक मोहरा बना लिया। अगले साल लोकसभा चुनाव है इसलिए लालू ने इसे अपना एक मुद्दा बना लिया। पहले तो जेडीयू को ललकार और उनके बिहार के सांसदों को इस्तीफा देने की चुनौती दी। पर जब जेडीयू के सांसदों ने वाकई लोकसभा स्पीकर को अपना इस्तीफा दे दिया तो लालू ने अपने फूहड़,दोगले और घटिया अंदाज फिर से कहा कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दें तब उनके सांसद इस्तीफा देंगे। इन नपुंसक नेताओं को इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं कि एक घर में चिराग बुझ गया है। उसकी बहनें रोज़ टीवी पर रो-रोकर इंसाफ मांग रही है पर नेताओं के लिए राजनीति उससे ज्यादा जरूरी है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनकाउंटर के बाद एक दिन अपना धर्म समझकर राहुल के घर पहुंच गए। बस हो गया। खानपूर्ति हो गई। अब उसको रोज़ मारने के लिए राजनीति चमकाने लगे। शर्म किसी को नहीं आती। सबका पहला धर्म है राजनीति। जिसमें नीति कुछ भी नहीं है और को चलाने के लिए दूसरी सारी चीजों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन नेताओं के घर में कभी ऐसी विपदा नहीं आती। काश! इन्हें समझ में आता कि दूसरों के घर में जब ऐसी नौबत आती है तो क्या गुजरता है। मरना तो आम आदमी की नियति है। नेता तो देश पर मर मिटते हैं। देश को लूटने, आम लोगों की संवेदनाओं को खत्म करने, अपनी डफली बजाने के लिए मर मिटते हैं।

इसलिए मैंने शुरु में कहा था--हम जिस दौर में जी रहे हैं वहां सबसे बड़ा सच है 'झूठ'। जो जितनी चालाकी से झूठ बोलता है, जो अपने ग़लत कारनामों को आसानी से छुपा सके--वो ही है आज की सबसे बड़ी जीत। संभव है हम लगातार हार रहे हों पर ये तय है कि हमारी हार में ही हमारी जीत है। और जीतने वाले वाकई हार रहे हैं। खुद को।

राहुल राज या उस जैसे लोगों का यहां मरना तय है पर याद रखना जिस दिन राज ठाकरे जैसे लोग मरेंगे उन्हें भगवान का दर्जा दिया जाएगा। लोगों की लंबी कतारें रहेंगी। पूरा मीडिया लाइव कवरेज कर रहा होगा। और अखबारों की पहली हेडलाइन भी।

टिप्पणियाँ

बहुत सटीक बातें कही है आपने।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

'मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा'

कौवे की मौन सभा में कुटाई

सृजनात्मकताएं मृत्यु का प्रतिकार हैं