तानाशाह मुशर्रफ का अंत



पाकिस्तान टीवी पर पूर्व जनरल परवेज मुशर्रफ को रोते हुए पूरी दुनिया ने देखा। घड़ियाली आंसुओं का मानों सैलाब ला दिया। लेकिन पाकिस्तान की जनता पर कोई खास फ़र्क नहीं पड़ने वाला था। लोगों के दिल पर उभरे गहरे जख्मों पर इन घड़ियाली आंसुओं का असर नहीं हुआ। एक बार फिर से जिंदगी की हकीकत सामने आई। समय से बड़ा कोई नहीं। चाहे सद्दाम हुसैन हो या फिर मुशर्रफ। अंत एक सा ही होता है।

तानाशाह की प्रमुख कांटे

भारत के लिए चुन चुन कर कांटे बोने वाले फौजी तानाशाह के तौर पर।
(1) याद कीजिए - 2001 में करगिल की चोटियों पर 500 बहादुर भारतीय फौजियों का खून बहाने के लिए यही जनरल जिम्मेदार है। महीनों की तैयारी के साथ सादी वर्दी में पाकिस्तानी फौजी टिड्डियों की तरह करगिल की चौटियों पर काबिज हो गए थे। देर से भारत को खबर लगी - और उस वक्त चोटियों को आजाद करवाने में नाकों चने चबाने पड़ गए। ये था मुशर्रफ का बोया पहला कांटा। उस वक्त तो वो सत्ता में भी नहीं थे, नवाज शरीफ सरदार थे - लेकिन फौज और आईएसआई की लगाम मुशर्रफ के हाथों में ही थी।

(2) 13 दिसंबर 2001 - भारत के दिल पर सीधा हमला, आत्मघाती हमलावरों ने सीधे संसद में गोलियां चलानी शुरू कर दीं। इस हमले से पूरी दुनिया सन्न रह गई, जांच पड़ताल हुई तो नाम सामने आया पाक खुफिया एजेंसी, बेहद चालबाज और कुटिल आईएसआई का। कहा गया कि ये था मुशर्रफ का बोया दूसरा कांटा।

(3) ये वो दौर था जब भारत और पाक के बीच तनाव चरम पर था, जंग की आग कभी भी भड़क सकती थी, सीमाओं पर फौजियों की तादाद बढ़ती जा रही थी। उसी दौर में आगरा में शांति की कोशिश हुई, मुशर्रफ आए और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिले। लेकिन ये बातचीत रंग न लाई, और आगरा के बाद ही करगिल की साजिश परवान चढ़ी।
आज मुशर्रफ न जनरल हैं और न पाकिस्तान के राष्ट्रपति, महाभियोग के डर से ये जनरल मैदान छोड़ कर भाग गया है - लेकिन जाते जाते करगिल की जंग पर आज भी अपनी पीठ थपथपाने से नहीं चूक रहा।

मुशर्रफ का कहना है कि उन्हें राजनीति का शिकार बनाया गया, लेकिन वो भूल जाते हैं कि बबूल का ये पेड़ तो उनका ही बोया हुआ है। मुशर्रफ के अंत की स्क्रिप्ट काफी पहले से पाकिस्तान में ही लिखी जा रही थी। उनके दौर में ही मुल्क में कट्टरपंथियों की एक नई जमात खड़ी हो गई। लाल मस्जिद में कट्टरपंथियों का कब्जा और फिर वहां फौज का हमला इसका गवाह है। बलूचिस्तान, सिंध, अफगानिस्तान से सटे इलाकों में गंभीर संकट खड़े हो गए. मुशर्रफ ने बलूच नेता नवाब खान बुग्ती को हवाई हमले में मरवा दिया। एक एक कर मुशर्रफ के ताबूत में कीलें गड़ती गईं। अंतिम कील बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद गड़ गई। भुट्टो की हत्या में भी शक मुशर्रफ और आईएसआई पर ही आया। लेकिन हैरत है एक अच्छे फौजी जनरल राजनीतिक की बारीकियां समझ न सके, अपने विरोधियों को एकजुट होते देख न सके, इस भ्रम में जीते रहे कि कल का तानाशाह आज का नायक बन गया है।

मुशर्रफ के इस्तीफे पर दुनिया भर के देशों ने प्रतिक्रियाएं दी। लेकिन जानकार मानते हैं कि अमेरिका का अफसोस महज दिखावा है। वो कब किसके साथ खड़ा होकर किसकी हत्या की साजिश रच दे, कहना मुश्किल है।

भारत
भारत ने परवेज़ मुशर्रफ़ के इस्तीफ़े को पाकिस्तान का अंदरूनी मामला बताया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा इससे ज़्यादा वो और कुछ नहीं कहना चाहता। भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथी इस मौका को इस्तेमाल कर भारत में हमले कर सकते हैं।

अमरीका
अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने परवेज़ मुशर्रफ़ की तारीफ़ करते हुए कहा कि उन्होंने अल क़ायदा के ख़िलाफ़ अभियान में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि वो आतंकवाद के ख़िलाफ़ खड़े पाकिस्तान से आगे भी हाथ मिलाने के लिए तैयार हैं।
अमरीका की विदेश मंत्री कॉंडोलीज़ा राइस ने परवेज़ मुशर्रफ़ को अमरीका का दोस्त बताया है। उन्होंने कहा कि अमरीका पाकिस्तानी राजनीतिक नेताओं के साथ मिलकर काम करता रहेगा और पार्टियों को चरमपंथ समेत कई समस्याओं से निपटने के लिए दोहरी ऊर्ज लगानी होगी।

ब्रिटेन
वहीं ब्रितानी सरकार ने परवेज़ मुशर्रफ़ को शुभकामनाओं देते हुए कहा है कि पाकिस्तान और ब्रिटेन के बीच रिश्ते किसी एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं करते। ब्रितानी विदेश मंत्री डेविड मिलीबैंड ने कहा, कई मायनों में मुशर्रफ़ के कार्यकाल में अहम नतीजे सामने आए। आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग, भारत के साथ बातचीत और भ्रष्टचार ख़त्म करने में मुशर्रफ़ ने भूमकि निभाई।

अफ़गानिस्तान
अफ़ग़ानिस्तान ने परवेज़ मुशर्रफ़ के इस्तीफ़े का स्वागत किया है और कहा है कि उनके जाने से इलाक़े पर सकारात्मक असर पड़ेगा।

जापान
उधर जापान के प्रधानमंत्री यासुओ फ़ुकुदा ने उम्मीद जताई कि परवेज़ मुशर्रफ़ के जाने के बाद अमरीका के नेतृत्व में आतंक के ख़िलाफ़ चल रही जंग पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

रूस
वहीं रूस ने एक बयान में उम्मीद जताई है कि परवेज़ मुशर्रफ़ के इस्तीफ़े से पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति पर नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा।

यूरोपीय संघ
वहीं यूरोपीय संघ ने मुशर्रफ़ के जाने को अंदरूनी मामला बताया. यूरोपीय संघ की अध्यक्षता इस समय फ़्रांस के पास है. फ़्रांस ने पाकिस्तान में एकजुटता का आग्रह किया। फ़्रांसीसी विदेशी मंत्रालय ने बयान में कहा , हम चाहते हैं कि अगला राष्ट्रपति और पाकिस्तान सरकार मिलकर काम करेंगे और देश के सामने चुनौतियां का सामन करेंगे।

ऐसे में अब सवाल एक ही है। क्या फिर से कश्मीर मसले पर फिर से उबाल आने की आशंका है? अमेरिका के दवाब में मुशर्रफ कम से कम चुप तो रहते थे। पर क्या मियां नवाज शरीफ और जरदारी की मिली जुली सरकार पाकिस्तानी जनता की भावना को भुनाने की कोशिश करेंगे? अगर ये मामला फिर से बढ़ता है तो निश्चित तौर पर दोनों देशों में अशांति और अस्थिरता बढ़ेगी। और अगले युद्ध से इंकार नहीं किया जा सकता।

टिप्पणियाँ

Udan Tashtari ने कहा…
ये तो एक न एक दिन होना ही था.

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