'लीदी' बनो मस्त रहो

यकीन मानिए, ये 'मालिक के मल' से थोड़ा हटकर है। मालिक का मल ढोने वालों की तादाद बढ़ते देख मैंने सोचा क्यों न मस्ती की लीद के साथ जिया जाए। इसका अपना मज़ा है। आपको लग रहा होगा ये लीद क्या चीज़ है? लीद क्या मल से अच्छी चीज़ है? जवाब है शायद नहीं। लेकिन दिल बहलाने के लिए कुछ तो होना चाहिए। अगर मलवाहक नहीं हैं तो बनिए 'लीदी' यानी लीद ढोने वाला।

लोग कहते हैं कि कईयों को मलवाहक बनने का मौका नहीं मिलता। इसलिए वो 'लीदी'बन जाते हैं। पर ऐसा नहीं है दोस्त। ज़िंदगी का एकमात्र फलसफा बदबूदार मल ढोना ही नहीं है। कुंए से निकलकर तो देखो मेरी जान। खुद को धुरंधर आंको पर याद रखो जिस दिन 'लीदियों' के दिन फिरेंगे एक तरफ जश्न और दूसरी तरफ मातम होगा। Every dog has a day, लीदियों के लिए एकमात्र नारा।

साहित्यकारों और पत्रकारों में 'लीदियों' से ज्यादा मलवाहक है। चूंकि दोनों बौद्धिकता से सीधा वास्ता रखते हैं इसलिए मलवाहकों की भरमार है। जगह हो न हो पर मल ढोने के लिए सिरफुटौवल चलता रहता है। कहीं कोई मौका ऐसा न छूट जाए जिसका फायदा कोई और उठा ले। और ईमानदारी के नाम पर तमगा हंसते-हंसते खींच ले जाए।

ब्लॉगरों में 'लीदी'हैं। लेकिन समय के साथ ऐसी प्रजाति खत्म हो रही है या खत्म होने के कगार पर हैं। किसी का ब्लॉग खोलो, परंपरा का निर्वाह होता दिख जाता है। ब्लॉगीरी में तमाम बड़े-बड़े धुरंधर हैं। मनमाफिक एक दूसरे पर खूब थूकते हैं। दूसरे चटखारे लेकर बात करते हैं। मुझे इंतजार उस दिन का है जब एक खेमा दूसरे को मां...बहन...की गालियां देकर लिखना शुरु करेगें।

स्पष्टीकरण---मैं अब तक लीदी हूं। कब मलवाहक बन जाऊं कहना मुश्किल है।

टिप्पणियाँ

आवारागर्द ने कहा…
इन्शाअल्लाह, आप जरूर ही मलवाहक बनेंगे... मेरी तमाम दुआएं आपके साथ हैं... आप ये लीदी के काम से कुछ ऊपर उठें और जो मल ढो रहे हैं, उनके साथ जाकर अपनी सुरतान छेड़ें... आपको कामयाबी मिलेगी... मैं सोचता हूं कि भद्रजनों के लिए ये ब्लॉग नहीं है और आप भद्रजन हैं भी नहीं... इसलिए मल और लीद से इस ब्लॉग को भरते रहें... और उम्मीद है कि गालियों से भरने की परंपरा भी आप ही शुरू करेंगे... इसी उम्मीद के साथ खाली दिमाग...
खुली किताब ने कहा…
खाली दिमाग,
महाशय मुझे अच्छा लगा। आपके दिमाग के किसी कोने में कहीं कुछ आया तो। वाह! भाई देखिए लीद और मल जिंदगी के कड़वे सच हैं। न चाहते हुए भी आपको एक का साथ देना होगा।
जहां तक बात ब्लॉगिंग की बात है, मैंने देखे हैं तमाम बड़े लिखाडों और साहित्कारों के ब्लॉग। शर्म आई। अपेक्षाकृत सहज और सभ्य है। बावजूद इसके नई एंट्री पढ़कर टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद।
धीरज
आवारागर्द ने कहा…
बड़े दिन बाद देखा तो भूल ही गया कि ये पुरानी पोस्ट है... एकदम ताजगी का अहसास... धन्यवाद मित्र... ऐसी रोशन लीदी के लिए... कि जब आप पढ़ें तो ताजगी का अहसास हो..

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