'KUDOS' गीरी

सीन नंबर 1

वाह मजा आ गया! आज तो सर, हमने सबको पीछे छोड़ दिया। लगभग आधा घंटा पहले ख़बर एयर पर थी। सबसे तेज़ और सबसे आगे रखने वाले पानी मांग रहे थे। ऐसे ही करेंगे सर, आपका सिर नीचा नहीं होने देंगे सर। हूं...अच्छा रहा। वाकई मज़ा आ गया। तुमने कमाल कर दिया। देखो, मैं यही रफ्तार और ये जज़्बा चाहता हूं। बस कुछ ज़्यादा नहीं करना है। सबको रुलाकर मारना है। एक अपेक्षाकृत छोटे और दूसरे सबसे बड़े अधिकारी के बीच की बातचीत। बॉस की बातें सुनकर 'क' का मन गदगद हो गया। मन ही मन उसे न जाने क्यों ऐसा एहसास होने लगा कि अब तो बेड़ा पार है। इस बार कोई नहीं रोक सकता...। बुदबुदाया, सा.........देख लेंगे। बड़ा बनता है न! छोड़ेंगे नहीं।

बॉस और 'क' के बीच की बातचीत आपस में हुई। वहां एकाध जूनियर ही मौजूद रहे होंगे। इसलिए शंका ये थी कि अगर बॉस ने इस बात का ज़िक्र किसी से नहीं किया तो फिर सारा किया धरा पर पानी फिर जाएगा। हालांकि मंजिल बॉस ही थे। पर इसके बारे में सबको जानना उतना ही जरुरी था जितना अपने हमसैलरी और हमओहदे वाले की बुराई करना। मन में छटपटाने लगा। कैसे इसको सार्वजनिक किया जाए। जब ज्यादा कुछ नहीं सूझा तो तय किया कि मीटिंग में किसी तरह से इसे उठाया जाएगा।

सीन नंबर 2

सर, आपने देखा। क्या? वही ख़बर। मैंने तय किया कि चाहे जो हो जाए, किसी भी तरह से सबसे पहले मैं हूं उतारुंगा इस खबर। आपसे बिना पूछे आपका इंटरव्यू का शो गिरा दिया और चढ़ गए। लगभग पैंतालीस मिनट बाद दूसरे चैनल आए इस खबर पर। हां, अच्छा था। हमलोगों ने अच्छा किया। बल्कि मैं आपको एक बात बताऊं कि जब आपका फोन आया उससे पहले हमने बिलकुल वैसा ही ग्राफिक्स ऑन एयर कर दिया था। सर ने सिर हिलाते हुए कहा--हां, पर बिलकुल वैसा नहीं था। बाद में तुमने देखा कि दूसरों के पास कितना बढ़िया ग्राफिक्स था। नहीं, नहीं सर, वो तो शुरुआती ग्राफिक्स था। चूंकि उसे ऑन एयर करना था इसलिए उसे वैसे ही जाने दिया। अब वैसा ही बन रहा है जैसा कि आप कह रहे हैं। हां, ठीक है बनते ही इसे एयर पर डाल देना। जी, जी सर। एक अपेक्षाकृत बड़े और दूसरे सबसे बड़े अधिकारी के बीच की बातचीत।

सीन नंबर 3

सर के जाते ही 'ख' महोदय ने तय किया कि अब थोड़ा औऱ नंबर बढ़ाया जाए। धड़ाधड़ मेल खोला और शुरु कर दी 'कुडोसगीरी'। कुडोस का शाब्दिक अर्थ जो भी होता हो पर उसका भाव ये है कि अच्छा काम करने वाले उस व्यक्ति विशेष को प्रोत्साहित करना और तारीफ करना। 'ख' सर ने कुडोसगीरी में इस बात का ख्याल रखा कि कहीं इससे सीधे-सीधे ये न झलक जाए कि उन्होंने सारा श्रेय ले लिया। पर इस बात का भी ख्याल रहे कि अपने बारे में, अपने नेतृत्व क्षमता का भी बखान न छूटे। जैसे ही मेल सेंड किया कि बस उस पर उनके चाहने वालों ने चिड़िया बिठाना शुरु कर दिया। एक ने किया, दूसरे ने किया, तीसरे ने किया। बारी-बारी से तमाम एकराही ने चिड़िया बिठाई। पर बॉस ने अबतक चिड़िया नहीं बिठाई।

सीन नंबर 4

दोपहर की संपादकीय मीटिंग जारी है। खबरें बताने का सिलसिला शुरु हुआ। जैसे ही दिन वाली खबर का ज़िक्र हुआ कि 'क' तपाक से दूसरे के मुंह से बात छीन ले गए। हां, इसके बारे में मैं बताता हूं। इसमें अब फलां-फलां डेवलप्मेंट हो चुका है। स्टोरी लिखी जा चुकी है जल्दी ही एयर पर होगी। बात खत्म करते हुए 'क' को लगा कि जैसे मोटापे के बावजूद एक ही सांस में ग्राउंड का दस चक्कर लगा लिया हो और थकान का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं। तभी अपेक्षाकृत बड़े अधिकारी 'ख' सर ने 'क' से पूछा- लेकिन स्टोरी में जो सबसे जरूरी बात होनी चाहिए वो जानकारी तो है ही नहीं। उसको दोबारा बनवाना पड़ेगा। बहुत बकवास बन रही है स्टोरी। ये क्या एक झटके में 'ख' सर ने सारे किए धरे पर मिट्टी भरा ट्रक गिरा दिया। हालांकि 'ख' ने कुडोसगीरी का खेल खेलकर पहले ही बाजी मार ली थी। लेकिन अब और पुख्ता कर विजय मुस्कान पूरे कॉन्फ्रेंस रूम पर फेंकी।

मीटिंग में मौजूद लोग भी इस खेल से वाक़िफ़ थे। लेकिन आज बारी उनकी नहीं थी इसलिए ज़्यादातर लोगों के ओठ खिले हुए थे। सर भी जानते थे असलियत। पर वो भी चुप थे।

सीन नंबर 5


जूनियर्स फिर से बात करते पाए गए---हम लोग मजदूर हैं। सारा काम हमने किया पर श्रेय लेने के लिए होड़ा-होड़ी चल रही है। छोड़ों यार, अरे! यार, हमारी किस्मत गधे के .....और फुलस्टॉप हाथी के.....। एक साथ सब जोर से हंस पड़े।

टिप्पणियाँ

Dr. SUDHA UPADHYAYA ने कहा…
सार्थक जी,

ये विडंबना सिर्फ मीडिया में ही नहीं है। बल्कि ये तो हर उस क्षेत्र में है जहां मार काट की गुंजाइश ज्यादा है। सीन के माध्यम से आपने काफी सूक्ष्मता से लोगों की मानसिकता को समझाया है। पर समय का दुर्भाग्य ये है कि ऐसे ही लोग ज्यादा फल-फूल रहे हैं और बॉस भी उन्हीं को जानते और मानते हैं।
सुधा
खुली किताब ने कहा…
सुधा जी,

चिंता इस बात की नहीं है कि चमचों की कमी है। बल्कि इस बात की है कि इनकी तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। दरअसल कामचोरी और मक्कारी को जीवित रखने के लिए चमचागीरी सबसे ज़रुरी हथियार है। ऐसे में लोगों को ये समझ में आने लगा है कि कैसे जल्दी से जल्दी से ऊपर उठा जाए। ज़ाहिर है बॉस भी उन लोगों को समझते हैं पर सवाल ये है कि दिन के आखिर में बॉस भी उन्हीं तो तवज्जो देते हैं जो उनके आसपास है। वरना बॉस का अपना अहम है। अगर किसी ने उस अहम को संतुष्ट नहीं किया तो फिर आप ब्लैक लिस्टेड हैं। बस विडंबना ये है।
आवारागर्द ने कहा…
कुछ देर से ही सही मेरे खाली दिमाग की बत्ती भी जली... मुझे लगा धीरज जी कि आपने न्यूजरूम के नंगे सच को सबके सामने उघाड़कर रख दिया है। बधाई के पात्र हैं आप। साथ ही कहना चाहूंगा कि इस कुडोसगीरी को एक मनोरोग की तरह देखा जाना चाहिए... जो बॉसेज से लेकर जूनियर्स तक विषवृक्ष की तरह फैल गया है। लोग-लुगाई सभी इसमें बराबर की भागीदारी कर रहे हैं। दरअसल अपने किए काम की प्रशंसा की उम्मीद बुरी नहीं है... लेकिन जब ये उम्मीद राजनीति की तरह की जाए तो इसे जड़ से उखाड़ फेंकने की जरूरत बन जाती है... कुछ कीजिए... अगर आप बॉस हैं तो कुडोसगीरी न करें और न अपने नीचे वालों को करने दें...अगर आप बॉस बनने वाले हैं तो जरूर इस बात का ख्याल रखें कि आप इसे नहीं पनपने देंगे।

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