कौवे की मौन सभा में कुटाई
रोज़ सुबह की तरह आज भी मैं राजपथ पर टहलने निकला। राजपथ वो नहीं जिसपर पैरेड होता है , अपने घर के बाहर वाली सड़क को भी मैं राजपथ ही कहता हूँ। वैसे भी कहने में क्या जाता है। किसी को ‘ वीर ’ कह देने से वो वीर थोड़े न हो जाता है। रहता तो याचक ही। चाहे जितनी बार भीख माँग ले। खैर , राजपथ पर टहलते - टहलते अचानक मेरी नज़र एक सूखे पेड़ पर गई। दीमक ने उस पेड़ को चूस लिया है , जब तक खड़ा है , तब तक पेड़ है। जिस दिन गिर जाएगा , उसके छोटे - छोटे टुकड़े काटकर लोग बोन फ़ायर की मस्ती में दारु पी लेंगे। उस सूखे पेड़ पर कौवों की सभा चल रही है। नमस्ते की मुद्रा में सारे कौवे अलग - अलग टहनियों पर बैठे हैं। मुझे हैरानी हुई। कहीं से चू - चपड़ की कोई आवाज़ नहीं आ रही है। मैं रुक गया। मन ही मन कहा , वाह ! हनुमान जी , आपकी चालीस की महिमा है कि लाउडस्पीकर तो क्या चिड़ियों की आवाज़ तक बंद हो गई। तभी एक कौवे ने ज़ोर से कांव - कांव किया। मुझे अपनी