'बीजेपी के लिए राहुल गाँधी साबित होंगी किरण बेदी' (Kiran Bedi is going to be Rahul Gandhi for BJP in Delhi)






दिल्ली चुनाव भले ही बीजेपी के लिए आन बान और शान का सबब बना हो। पर लगता है ड्राइविंग सीट पर किरण बेदी को बिठाकर बीजेपी ने अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार ली है। अब चूंकि मामला हाथ से निकल चुका है इसलिए बीजेपी के लिए गले की हड्डी साबित हो गई हैं किरण बेदी। उगलने का तो सवाल ही नहीं और निगलने के अलावा कोई चारा नहीं है। ऐसा माना जा रहा है कि आईबी की रिपोर्ट ने बीजेपी की आँखें खोल दी हैं। अखबारों की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की जनता मोदी को पसंद तो कर रही है लेकिन बेदी पर भरोसा करने से कतरा रही है। यही ख़तरा संघ को भी था। संघ भी अबतक किरण बेदी पर भरोसा नहीं कर पा रही है। अब मोदी के इस फैसले को बदलने का न तो समय है और न ही कोई समझदारी है। देखने की ज़रूरत ये है कि किरण के सामने किस-किस के ख़तरे हैं---
(1) किरण बेदी का रूख नेताओं जैसा नहीं अफसर जैसा है। उनका पूरा हाव-भाव अब भी अपसरों जैसा है जबकि राजनीति में अफसर जैसा रौब नहीं बल्कि सरलता और सहजता ज़रूरी है और आम जनता जबतक खुद को उस अमुक नेता से जोड़ नहीं पाती, वोट देने में हिचकिचाती है।  
(2) किरण न तो वक्ता अच्छी हैं और न ही नेताओं जैसी समझ है---एक तरफ मोदी अपने वाक चातुर्य की तारीफ करते नहीं थकते वहीं दूसरी तरफ ऐसी नेता को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कुिया है जो डिबेट तो दूर सामान्य बातों को भी सहजता से नहीं रख पाती हैं। ऐसे में जनता को समझ में आता है कि जब वो अपनी बात नहीं रख पा रही हैं तो उनकी बातें कैसा रख पाएंगी।
(3) संघ का ऊपरी समर्थन-मोदी भले ही दिल्ली चुनाव को इज्ज़त का अखाड़ा मान रहे हों पर संघ और उसके खांटी कैडर किरण को समर्थन देने में सुख का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं। हालत तो ये भी है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार भी खुलकर किरण की तरफदारी नहीं की। उनकी किसी बात से ये समझ नहीं आता कि किरण को वो सपोर्ट कर रहे हैं।
(4) दिल्ली बीजेपी के पुराने नेता नाराज़-दिल्ली बीजेपी के पुराने नेता किरण बेदी को आयातित करने से नाराज़ हैं। उनकी नाराज़गी जायज़ भी है। ऐसे में अगर नेता नाराज़ हैं तो उनके कार्यकर्ता भी नाराज़ हैं। कार्यकर्ताओं का तो ये भी कहना है कि अगर किरण की जगह डॉ हर्षवर्धन ही होते तो आज तस्वीर अलग होती।
(5) इनके अलावा सबसे बड़ी बात ये है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी का जनाधार अब भी बरकरार है। अरविंद केजरीवाल के भगोड़ेपन को बीजेपी ने भले ही रोज़-रोज़ सैंकड़ों बार कहा हो पर जनता पर उसका असर उतना नहीं पड़ रहा है। ग़रीब जनता आज भी अरविंद के साथ है। पढ़़े लिखे लोग भी अरविंद के साथ हैं। ऐसे में जो अरविंद के साथ नहीं हैं वो हैं वैश्य समाज के लोग। पर बीजेपी के आज के ताज़ा कार्टून(जिसमें अग्रवाल गोत्र को उपद्रवी कहा गया) से कुछ वोटर अरविंद से जुड़े होंगे इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

ऐसे में अगर बीजेपी दिल्ली में सरकार नहीं बना पाती है तो उसका ठीकरा किरण बेदी पर ही फूटेगा। लेकिन उसके बाद किरण बेदी की क्या हैसियत रह जाएगी पार्टी में, इसका अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है।




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