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सितंबर 16, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रचंड की खुली पोल

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नेपाल के नए प्रधानमंत्री प्रचंड। माओवादियों के प्रखर और ओजस्वी नेता। ऐसा नेपाल की जनता ही नहीं माओवाद को मानने वाले भी कहते थे। नेपाल में राजशाही को जब तक खत्म नहीं कर लिया तब तक चैन नहीं लिया। प्रचंड खुद अब सत्ता में हैं। लेकिन इससे पहले वो माओवादी नेता हैं। माओवाद के सिद्धांतों को मानने वाले। पर ऐसा नहीं है। सत्ता में आते ही प्रचंड की नंगई नजर आ गई। प्रचंड बिलकुल नेताओं की तरह बात करने लगे। किससे नफा और किससे नुकसान--इसका ख्याल सबसे पहले रखने लगे। प्रचंड का भारत दौर उनके लिए काफी महत्वपूर्ण है। बड़ी वजह है। नेपाल में भारतीय कंपनियों के निवेश की गुहार लगाना। प्रचंड ने हमेशा पूंजीपतियों के खिलाफ बेखौफ आवाज उठाई। जिंदगी का एक लंबा समय जंगलों और भारत के शहरों में छुप-छुपकर बिताया। लेकिन सत्ता में आते ही खुद पूंजीपतियों को निवेश के लिए अनुरोध कर रहे हैं। देश की तरक्की हर कोई चाहता है। पर एकदम से विकास मॉडल को हाईजैक करके उसे अमल में लाने की फिलहाल जरूरत नहीं थी। बुद्धदेव भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल के रोल मॉडल मुख्यमंत्री के तौर पर उभरे। विकास के नाम पर ज्योति बाबू से ज्यादा काम किया। इसके लि