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सितंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मठाधीशों और चमचों की जमात

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मित्रों, हंस के सितम्बर अंक में मेरी-तेरी उसकी बात में राजेंद्र यादव ने आखिरकार अपनी पुरानी कुंठा उजागर कर दी। अपनी पत्रिका है वो चाहे जो लिखें। किसी के बाप की हिम्मत है जो उन्हें रोक ले। उन्होंने शुरुआत परसई जी की लघुकथा से की है--सुबह-सुबह एक नेता तलवार लेकर बैठ गए। 'आज तो अपनी गर्दन काटकर रहूंगा' आसपास के लोग जितना ही समझाने की कोशिश करते, उतनी ही उनकी जिद्द बढ़ती जाती कि नहीं, आज तो यह गर्दन कटकर ही रहेगी. लोगों ने पूछा कि कोई तो कारण होगा ? झल्लाकर बोले, यह भी कोई गर्दन है जिसमें सात दिनों से कोई माला ही नहीं पड़ी. अब इस गर्दन की खैर नहीं... ये बातें राजेंद्र यादव जी ने नामवर जी के लिए लिखी। उन्होंने कहा कि मैं सोचता हूं कि नामवर जी को भी क्या कभी ऐसी पवित्र बेचैनी होती होगी कि दो दिन हो गए, किसी ने अध्यक्षता करने नहीं बुलाया ? नामवर जी हर गोष्ठी में शाश्वत अध्यक्ष या फिर अंतिम वक्ता होते हैं। जाहिर है नामवर बड़े साहित्यकार है। एक जमात है उनके साथ। स्वार्थ और अवसर के साथ जुड़े लोग। राजेंद्र यादव भी बड़े साहित्यकार हैं। अपनी पत्रिका की धौंस से साहित्य में महिलाओं और दलितों

अपराजिता

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लड़ने और जूझने का दम बचपन से ही भरती थी। क्या पता था कि पल-पल प्रतिपल यही दिनचर्या में शामिल हो जाएगा। उसके लिए कभी कोई हरा भरा चिकना रास्ता नहीं था और शायद इसीलिए फिसलने का डर भी कम था। रास्ते बीहड़ सुनसान या थकान से भरे हों तो उठते गिरते आदमी संभल ही जाता है। या यों कह लें खड़ा होने लायक बन जाता है। जय पराजय का प्रश्न उन्हें बेचैन करता होगा, जो अपनी जिंदगी दूसरों की शर्तों पर जीते हैं। न तो उसके पास उधार का चश्मा है और न ही अंतर्भेदी आंखें। जब जो कुछ देखा, भोगा जीया या कह लें सहा, वही उसकी पूंजी बन गई और इसी अनुभव संसार ने उसे समृद्ध कर दिया। कहने को न उसके पास कोई चतुराई है न मीठी बोली पर हां जहां तक मुझे पता है जानबूझकर तो कभी किसी का मन नहीं दुखाया। दुनिया भर की उपलब्धियां हासिल कर लेने पर भी यदि मन में शंका संदेह और संबंधों में असहजता अविश्वास भरा हो तो वो सिकंदर नहीं, पराजित ही कहलाएगा। ठोकरें खाते हुए उपहास झेलकर ताने सुनकर जिसने अपना दमखम संभाला हो वही अपराजिता। भौतिक चकाचौंध में हमसे हमारी दुर्लभ मुस्कान आदमीयत सहजता छीन ली है। यही चिंता का विषय है। उसे जीवन में न कोई रियासत

नवाज के इस रूप को देखिए

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इस तस्वीर को देखकर आप एक बार के लिए चौंकेंगे तो जरूर। है भी चौंकाने वाली। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ और दुनिया का सबसे खूंखार और हजारों बेगुनाहों को मौत की नींद सुलाने वाला आतंकी ओसामा बिन लादेन। आप को लग रहा होगा कि दोनों की तस्वीर एक साथ कैसे ? इस हकीकत को जानना है तो सुनिए। मियां नवाज शरीफ और ओसामा के बीच करीबी रिश्ते रहे हैं। नवाज शरीफ ने ओसामा ने एक बार नहीं कम से कम पांच बार तो जरूर मुलाकात की है। ऐसा नहीं कि ये आरोप हम लगा रहे हैं या फिर भारत सरकार ने लगाया है। बल्कि ये सनसनीखेज खुलासा खुद नवाज शरीफ के पुराने सहयोगी और आईएसआई के पूर्व अधिकारी खालिद ख्वाजा ने किया है। खालिद के मुताबिक 1990 में नवाज शरीफ ने बतौर प्रधानमंत्री ओसामा से मुलाकात की थी। खालिद का कहना है कि नवाज शरीफ ओसामा से कई बार मिल चुके हैं। उन्होंने ये भी दावा किया कि कम से कम पांच बार तो दोनों के बीच मुलाकात का जरिया वो खुद बने। आरोप सिर्फ इतना ही नहीं है। खालिद के अनुसार नवाज शरीफ का सऊदी शाही परिवार से कोई परिचय नहीं था। इस परिचय का सूत्रधार ओसामा बिन लादेन ही बना। उसी ने नवाज की शाही परिवा