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अप्रैल 26, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ये महापर्व नहीं है

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ये कैसा लोकतंत्र है? चुनाव मुद्दाविहीन है। पिछले डेढ़ महीने में हर पार्टी ने अपना एजेंडा बदला है। घोषणा पत्र में जो कुछ प्रकाशित करवाया, उसपर किसी रैली में उस दल के नेता ने जोर नहीं दिया। अगर आप गंभीरता से चुनाव को फॉलो कर रहे हों तो आप को इस बात का अंदाजा जरूर होगा। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि चावल तीन रुपए किलो हो जाएगा। लेकिन न तो पीएम न सोनिया और न ही स्टार प्रचार राहुल गांधी कहीं ये बोलते सुने गए कि ऐसा वाकई होने जा रहा। जहां रैली हो रही है या तो वहां की सरकार को गलिया दिया गया या फिर उनके बड़े नेता को भला बुरा कहा गया। मैं एक बात कहना चाहता हूं जिस कदर अमेरिका में चुनाव होता है वैसे चुनाव की कल्पना भारत में अगले कम से कम 20 साल तक नहीं कर सकते। जिन मुद्दों पर बहस होती है, जिन बातों पर जनता झूमने लगती है, जिसे लेकर देश और दुनिया में बदलाव की नई व्यवस्था बन सकती है वो सब होता है यहां। पर हमारे यहां वो नहीं होता बाकी सबकुछ होता है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं जब से मैंने होश संभाला है तब से लेकर आज तक चुनाव में एजेंडा लगभग एक ही रहा है--विपक्षी पार्टी को गाली देना। विक