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'बाज़ार में सब नंगे हैं'

एक समय था जब समाज में बिकाऊ लोगों को बड़ी खराब नज़र से देखा जाता था। जो बिक जाते थे वो उस पर पर्दा करते फिरते थे। सबसे ज्यादा डर इस बात का होता था कि लोगों को किसी भी सूरत में इस बात की जानकारी न हो। बल्कि ये शर्त रखी जाती थी कि इसके बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिए। और अगर पता चला तो फिर खैर नहीं। गवाह भी इस बात को उसी समय दफना देते थे। समय बदला समाज बदला। कहते हैं परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। समाज में तमाम परंपराएं विखंडित हुईं। समझदारों ने उन परंपराओं को मानने वालों को पिछड़ा और गंवार की संज्ञा दी। इसी देखा-देखी में लोग एडवांस कहलाने की होड़ में जुट गए। बस क्या था। सारी परिभाषाएं बदल गईं। नब्बे के दशक में ग्लोबलाइजेशन की ऐसी मार पड़ी कि हर संबंध में अर्थ घुस गया। जीवन औऱ मृत्यु को छोड़कर हर चीज पैसे के तराजू पर चढ़ गई। खरीरदार की तूती बोलने लगी। वो चौड़ा होकर धूमने लगे। अपने दम खम पर किसी को भी नंगा करने की बोली बोलने लगे। अभी दो दिन पहले किस क़दर खरीरदारों ने क्रिकेट खिलाड़ियों को नंगा किया-इसको दुनिया ने लाइव देखा। वाह मज़ा आ गया। वर्षों की मेहनत और लगन को एक झटके में न