'बाज़ार में सब नंगे हैं'

एक समय था जब समाज में बिकाऊ लोगों को बड़ी खराब नज़र से देखा जाता था। जो बिक जाते थे वो उस पर पर्दा करते फिरते थे। सबसे ज्यादा डर इस बात का होता था कि लोगों को किसी भी सूरत में इस बात की जानकारी न हो। बल्कि ये शर्त रखी जाती थी कि इसके बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिए। और अगर पता चला तो फिर खैर नहीं। गवाह भी इस बात को उसी समय दफना देते थे।

समय बदला समाज बदला। कहते हैं परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। समाज में तमाम परंपराएं विखंडित हुईं। समझदारों ने उन परंपराओं को मानने वालों को पिछड़ा और गंवार की संज्ञा दी। इसी देखा-देखी में लोग एडवांस कहलाने की होड़ में जुट गए। बस क्या था। सारी परिभाषाएं बदल गईं। नब्बे के दशक में ग्लोबलाइजेशन की ऐसी मार पड़ी कि हर संबंध में अर्थ घुस गया। जीवन औऱ मृत्यु को छोड़कर हर चीज पैसे के तराजू पर चढ़ गई।

खरीरदार की तूती बोलने लगी। वो चौड़ा होकर धूमने लगे। अपने दम खम पर किसी को भी नंगा करने की बोली बोलने लगे। अभी दो दिन पहले किस क़दर खरीरदारों ने क्रिकेट खिलाड़ियों को नंगा किया-इसको दुनिया ने लाइव देखा। वाह मज़ा आ गया। वर्षों की मेहनत और लगन को एक झटके में नंगा कर दिया गया। दुनिया के सबसे महानतम बल्लेबाज सचिन तेंडुलकर महज 439 करोड़ की औकात रखते हैं। (महज शब्द का इस्तेमाल सिर्फ इसलिए है कि किसी की शख्सियत को पैसे से तौला नहीं जा सकता) अब उनके बल्ले से आग बरसे या अंगारे उनकी कीमत उन्हें बता दी गई है। वो भी खुश और दुनिया भी स्तब्ध। अब भविष्य में जब भी सचिन की चर्चा होगी इसका जि़क्र जरूर होगा कि उनकी कीमत 439 करोड़ है। डॉन ब्रेडमैन ने ताउम्र भले ही इतने पैसे कभी नहीं देखे हों पर उनके सामने सचिन बहुत बौने हो गए। वरना सचिन की जब भी बात चलती ब्रेडमैन की याद आना स्वाभाविक था।

अगर पैसे के तराजू की ही बात करें तो धोनी ने सचिन को भी धो डाला। देखने में बात इतनी सी लग रही है पर ये सबको पता है कि धोनी सचिन की बराबरी कभी नहीं कर सकते। काबिलियत में धोनी कभी सचिन के पास भी नहीं फटक सकते। पर चूंकि बाज़ार में सब नंगे हैं। बिकने के लिए तैयार खड़े हैं फिर शर्माना कैसा?

सामाजिक सरोकार से जुड़े लोगों का कहना है कि ऐसी बोली तो लोग रेड लाइट एरिया में जाकर लगाते हैं। पर मुझे लगता है वक्त बदला है इसलिए अब लोगों की बोली लग रही है वो भी सरेआम। बिना शर्म औऱ संकोच के। ज़ाहिर है बिकने की ये नई पद्धति अब समाज में बढ़ेगी और समाज को नए तरीके से परिभाषित करेगी।

अब तो एक नया फैशन चलेगा, जो जितनी बार बिका वो उतना ही खरा और बढ़िया माना जाएगा।

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