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अगस्त 4, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लोकतंत्र नहीं नोटतंत्र

कमाल हो गया। इन नेताओं को देखकर अब शर्म नहीं आती। आनी भी नहीं चाहिए। शर्म आ गई तो इसका सीधा सा मतलब है आप किसी काम के नहीं है। मतलब ये कि आप नैतिकता, समाज और वगैरह-वगैरह की बातें करने वाले हैं। जिसका अर्थ है आप नकारे है। ठलुए हैं। हमारे कई बौद्धिक मित्र हैं। मीडिया में अच्छा प्रभुत्व रखते हैं। मठाधीश हैं। अपने लठ के बल पर मठ में काबिज हैं। उनकी राय है ठलुए लोग ही नैतिकता की बात करते हैं। जो कुंठित हो जाते हैं वही ज्ञान की सरिता बहाते हैं। या फिर वो ये भी कहते हैं कि जिनको मल उठाने का, बैग उठाने का मौका नहीं मिला वही ऐसी बाते करते हैं। बौद्धिक मित्रों की बातें बड़ी व्यावहारिक हैं। उन्हें जीवन का लक्ष्य पता है। रास्ता पता है। मकसद पता है। इसलिए वो इन घटिया, सड़ी गली सोच में विश्वास नहीं रखते। मैं बार-बार 'बौद्धिक' शभ्द का इस्तेमाल कर रहा हूं इसके पीछे भी उन मित्रों की कृपा है। बौद्धिक होने का मतलब ये नहीं कि बहुत सारी किताबें पढ़ी जाएं। बहुपठित होना बौद्धिक होना कतई नहीं है। कहां से कितना बातें टीप ली जाएं, उन चोरी की गई बातों पर कितने लेख लिख दिए जाए, बड़ी-बड़ी समीक्षाएं प्रकाशि