"मोहल्ला" के अविनाश (नए ब्लागर्स के पालनहार)

नए ब्लागर्स के पालनहार। उन्हें मंच देने वाले। उनकी आवाज को एक मंच देने वाले। यशवंत के भड़ास से नफरत करने वाले पर नए ब्लागर्स की भड़ास को अहमियत देने वाले---अविनाश। मोहल्ला ब्लागर्स चलाने वाले अविनाश। एनडीटीवी में बड़े पद पर काम करने वाले अविनाश। टेलीविजन के पुराने पत्रकार अविनाश। हिंदी के सबसे पुराने हिंदी ब्लागर्स में से एक अविनाश।

मुझे उम्मीद है अब आप लोगों के जेहन में अविनाश के 'मोहल्ला' की छवि उभर गई होगी। रवीश के साथ एक अलग मोहल्ला चलाने वाले अविनाश ने अच्छा किया कि एक नए पत्रकार की स्क्रिप्ट को अपने ब्लाग पर रखा। न तो आजतक मेरी अविनाश से मुलाकात हुई है और न ही नए पत्रकार अनिल यादव से। पर अविनाश को एक बात जरूर कहना चाहता हूं। टेलीविजन के लिए स्क्रिप्ट लिखने के लिए उसके साथ सपोर्टिंग विजुल का होना जरूरी है। लफ्फाजी और संपादकीय लिखने की गुंजाइश कम से कम टेलीविजन में कम रहती है। इसके लिए अखबार की नौकरी अच्छी है। कम से कम अविनाश से ऐसी उम्मीद मैं नहीं करता। अविनाश को ऐसे युवा पत्रकारों को एक बार जरूर समझाना चाहिए।

एक बात और पत्रकार बनने का मतलब ये नहीं कि किसी को कभी भी गाली दी जाए। हमें किसी को गाली देने के लिए सर्टिफिकेट नहीं मिला है। अगर साक्ष्य न हों तो गाली देने का मतलब है शब्दों का आडंबर। टेलीविजन न्यूज में क्रिकेट को अहमियत देने का पूरा श्रेय मीडिया को ही जाता है। अगर सारे खेल एक जैसे हैं तो धोनी को एनडीटीवी साइन करने के लिए करोड़ों रुपए क्यों देता है? कपिल देव को करोड़ रुपए से ज्यादा क्यों दिए जाते हैं? इससे पहले किसी भी न्यूज चैनल पर पहलवानों को स्टूडियो में, मुक्केबाजों का साक्षात्कार, शूटर का वॉक द टॉक दिखाया गया है? अगर नहीं तो क्यों। क्योंकि मालिक नहीं चाहता। मालिक जानता है कि क्रिकेट का जुड़ाव आम लोगों से है। पहलवान और मुक्केबाज एक दिन के हीरो हैं।
असली हीरो तो क्रिकेटर ही हैं।

अनिल यादव, हर चीज की एक सीमा है। आपको गाली देनी है तो प्रेस क्लब में दारू पीओ और फिर जमकर गाली दो। जिसे देना है। पर स्क्रिप्ट की गरिमा है। उसे बनाए रखो। मैं पूछता हूं---क्या अविनाश खुद कॉपी देख रहे होते तो इन बातों को एयर पर जाने देते। शायद नहीं। पर चूंकि ब्लाग चलाना एक धंधा बन गया है तो इस पर किसी को चाहे जितनी गाली दो। क्या फर्क पड़ता है। फिर अमिताभ बच्चन दूसरे स्टार पर टिप्पणी करते हैं तो हिंदी ब्लागर्स को क्यों कोफ्त होती है।

मुझे लगता है आने वाले समय में लोग ब्लाग पढ़ना इसलिए छोड़ देंगे क्योंकि इसपर सामान्य लहजे में कुछ भी नहीं लिखा जाएगा। सिर्फ गालियां होंगी और अपनी भड़ास होगी।

आइए अब आप उस कॉपी से भी रू-ब-रू हो लें जिसके बारे में बात हो रही है--(इस कॉपी को अविनाश के मोहल्ला से लिया गया है)

अविनाश जी, मैं एक नये चैनल में काम करता हूं, और स्पोर्टस बीट देखता हूं। ओलंपिक में भारत के अभियान पर मैने एक पैकेज लिखा, जो कि ऑन एअर भी हो गया। लेकिन बाद में मेरी लिखी स्क्रिप्ट के लिए मेरे सीनियर्स ने मुझे काफी तगड़ी बत्ती दी। उन्हें मेरी स्क्रिप्ट के जिन अंशो पर आपत्ति थी, वो अंश मैं आपको लिख रहा हूं।
लेकिन अब ये हमारे प्यारे देश भारत पर निर्भर है कि वो अपने सुशील कुमारों को गड्ढे वाले अखाड़ों की जगह अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मैट्स पर अभ्यास के मौके मुहैया कराये। जिससे कि आने वाले ओलंपिक में एक अरब से ज्यादा आबादी वाला हमारा मुल्क सिर्फ तीन पदकों को ही अपनी उप्लब्धि मानकर जश्न न मनाता रहे। लेकिन ऐसा हो इसके लिए हमें अपने टीवी चैनलों पर इन खेलों को भी जगह देनी होगी, और हमेशा क्रिकेट चालीसा छापने वाले अखबारों को अपनी कीमती स्याही दूसरे खेलों के लिए भी बचा कर रखनी होगी।

एक और लाइन जिस पर मुझे डांट सुननी पड़ी...

और हमारे ओलंपिक संघ को भी ये जवाबदेही तय करनी होगी कि बीजिंग में सरकारी खर्चे पर सानिया मिर्जा की मां की उपस्थिति ज्यादा जरूरी है या सुशील कुमार के मालिशिये की!
अविनाशजी, इनपुट और आउटपुट दोनों ने मुझसे कहा कि मीडिया पर सवाल उठाने वाला मैं कौन होता हूं... और सानिया मिर्जा की मां पर लिखने की तुम्हारी हैसियत है क्या अभी... और मुझे कारण बताओ नोटिस थमा दिया गया है। इसका जवाब मुझे अभी तक समझ में नही आ रहा है। क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं कि कारण बताओ नोटिस में मैं क्या लिखूं?

अविनाश जी, मीडिया में मुझे अभी कुछ महीने ही हुए है। अभी मैं यहां के दावं-पेंच समझने में नाकाम साबित हो रहा हूं। मेरा सवाल बस इतना भर है कि क्या वास्तव मे मैने इतनी भारी गलती की है जो कि मुझे नही करनी चाहिए थी।

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
आपने सिधे सपाट शब्दो मे बहुत कुछ लिख दिया है. एक सुधार - सुनने मे आया है कि अविनाश जी को एन डि टी वी से अलविदा कह दिया गया है.आज कल वो अखबार मे काम करते हैं. ब्लाग एक जरिया बनते जा रहा है बेकार का गाली गलौज एवम गाल थेथरई करने का. बहुत बार देखा गया है कि बिना किसी ठोस सबुत के एक वर्ग विशेष, जाती विशेष के उपर लोग जहर उगलते रहते हैं. ये लोग बातें बड़ी बड़ी करतें हैं लेकिन अंदर हि अंदर जातिवादी विचार धराओं से कुंठिर रहते हैं. ब्लाग के माध्यम से पत्रकारों के ऐसे ऐसे रुप देखने को मिलता है. बात ऐसे करेंगे जैसे कितने धर्मनिरपेक्ष हैं लेकिन क्या किसी धर्म कि बुराइ कर के आप धर्मनिरपेक्ष बन सकते हैं? क्या आप किसी जाति या वर्ग विशेष को निचा दिखा कर समाजिक सुधार ला सकतें हैं?
Nitish Raj ने कहा…
धीरू मैं तुम्हारी बात से बिल्कुल सहमत हूं। कल जब मैं ये पढ़ रहा था तब भी मैंने ये ही सोचा था कि एनडीटीवी मैं तो कभी ऐसा होता नहीं है पर पता नहीं अविनाश जी के द्वारा ऐसा क्यों? अब चिरंजीव के कमेंट से पता चला कि वो एनडीटीवी छोड़ चुके हैं।
दूसरी बात से भी सहमत हूं कि ब्लागिंग में कुछ दिन बाद कुछ समूह बन जाएंगे जो आपस में लिखेंगे उन से कोई पंगा लेगा तो गालियों से स्वागत करेंगे। किसी को कोई भी फर्क नहीं पड़ता कि कोई क्यों किसी को गरिया रहा है?
Nitish Raj ने कहा…
ये भी जानता हूं कि तुम्हें चोरी छिप्पे पढ़ने तो लोग आगए पर कोई भी टिपिया कर नहीं गया। इस से पता चलता है ग्रुपिस्म का।

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