'मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा'

कुछ तो होगा
कुछ तो होगा
अगर मैं बोलूंगा
न टूटे न टूटे तिलस्म सत्ता का
मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा
टूट मेरे मन टूट
अब अच्छी तरह टूट
झूठ मूठ मत अब रूठ---रघुवीर सहाय

सहाय जी ये पंक्तियां ज़िंदगी के लिए रामबाण की तरह है। सत् प्रतिशत मन को शांति मिलती है। अगर ध्यान से पढ़ें और अमल करें तो कम से कम मन की परेशानियां तो ज़रूर दूर होती हैं। लेकिन दिक्कत ये है कि लोग जानने समझने के बाद भी कुछ नहीं बोलते। मुक्तिबोध हमेशा ऐसे लोगों के खिलाफ लिखते रहे। पाश ने कहा था-बीच का रास्ता नहीं होता। बस सच यही है अगर ग़लत है तो ग़लत और सही है तो सही। पर लोग कहां ऐसा करते हैं।
अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दीजिएगा।

टिप्पणियाँ

मसिजीवी ने कहा…
मौन की अपनी एक राजनीतिक निर्मिति है्... ये मात्र संयोग नहीं कि मौन सदैव यथास्थिति के पक्ष में जाता है।
vandana gupta ने कहा…
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
prabhat ranjan ने कहा…
आपने सही कहा है.
Pankaj Narayan ने कहा…
सुधा जी, बहुत बढ़िया। ये मेरी पसंदीदा पंक्तियां हैं। आपके इस पोस्ट पर मैं अपनी एक पंक्ति समर्पित करता हूं, यह एक दिन मैंने अपने फेसबुक स्टेटस में लिखा था। 'यह आवाज़ जो तुम्हें साफ-साफ सुनाई दे रही है, इसे तुम्हारे ही शोर पर मैंने अपनी खामोशियों को रगड़-रगड़ कर पैदा किया है।'
bhawna....anu ने कहा…
Bilkul sach.hum apne jeewan k liye siddhant to bana lete h lekin usme saahas nhi daal paate....aur wo siddhant zindagi bhar hame muh chidaate rehte h.hum kaayar hi reh jaate h.
Dr. Shailja Saksena ने कहा…
Tutna ban ne se zyada mahattvapoorna ho jaata hai kabhi-kabhi...Raghbeer ji ki bahut sunder panktiya hai ye..bantne ke liye dhanywaad~

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