'मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा'
कुछ तो होगा
कुछ तो होगा
अगर मैं बोलूंगा
न टूटे न टूटे तिलस्म सत्ता का
मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा
टूट मेरे मन टूट
अब अच्छी तरह टूट
झूठ मूठ मत अब रूठ---रघुवीर सहाय
सहाय जी ये पंक्तियां ज़िंदगी के लिए रामबाण की तरह है। सत् प्रतिशत मन को शांति मिलती है। अगर ध्यान से पढ़ें और अमल करें तो कम से कम मन की परेशानियां तो ज़रूर दूर होती हैं। लेकिन दिक्कत ये है कि लोग जानने समझने के बाद भी कुछ नहीं बोलते। मुक्तिबोध हमेशा ऐसे लोगों के खिलाफ लिखते रहे। पाश ने कहा था-बीच का रास्ता नहीं होता। बस सच यही है अगर ग़लत है तो ग़लत और सही है तो सही। पर लोग कहां ऐसा करते हैं।
अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दीजिएगा।
कुछ तो होगा
अगर मैं बोलूंगा
न टूटे न टूटे तिलस्म सत्ता का
मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा
टूट मेरे मन टूट
अब अच्छी तरह टूट
झूठ मूठ मत अब रूठ---रघुवीर सहाय
सहाय जी ये पंक्तियां ज़िंदगी के लिए रामबाण की तरह है। सत् प्रतिशत मन को शांति मिलती है। अगर ध्यान से पढ़ें और अमल करें तो कम से कम मन की परेशानियां तो ज़रूर दूर होती हैं। लेकिन दिक्कत ये है कि लोग जानने समझने के बाद भी कुछ नहीं बोलते। मुक्तिबोध हमेशा ऐसे लोगों के खिलाफ लिखते रहे। पाश ने कहा था-बीच का रास्ता नहीं होता। बस सच यही है अगर ग़लत है तो ग़लत और सही है तो सही। पर लोग कहां ऐसा करते हैं।
अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दीजिएगा।
टिप्पणियाँ
कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com