साध्वी प्रज्ञा को बचाना है !



आज से ठीक दो दिन पहले बीजेपी के शीर्षस्थ लालकृष्ण आडवाणी ने भोपाल में चुनावी सभा में सरेआम ऐलान किया कि साध्वी प्रज्ञा को मुंबई एटीएस ने जानबूझकर फंसाया है। उन्होंने दावे के साथ जिक्र किया कि साध्वी प्रज्ञा पर ये उनका पहला वक्तव्य है। उन्होंने इसका कारण भी दिया। बताया कि उन्होंने साध्वी का एफिडेविट पढ़ा है। जिसमें साफ-साफ लिखा है कि एटीएस ने 16 दिनों तक हिरासत में रखा। इस दौरान कोर्ट में पेश तक नहीं किया गया। जाहिर है कानूनी तौर पर इसे जायज नहीं माना जा सकता। दूसरी वजह बताई कि साध्वी को हिरासत में लगातार परेशान किया जा रहा है। इसके बाद आडवाणी ने कांग्रेस और यूपीए सरकार को खरी खोटी सुनाई। अच्छा है साध्वी के बहाने राजनीति का नया पैंतरा।

उसी दिन आरएसएस के वरिष्ठ मदन दास देवी ने भी पत्रकारों से बात की। साफ किया कि इंद्रेश कुमार संघ के कर्मठ और अहम कार्यकर्ता है। संघ में न तो उनकी हैसियत कम होगी और न ही उन्हें किसी से परेशान होने की जरूरत है। इसी के साथ संघ ने ये भी कहा कि साध्वी को जानबूझकर परेशान किया जा रहा है। और इसकी वजह है सरकार और उससे भी बड़ी वजह है वर्तामान और आगामी चुनाव।


इन सब प्रतिक्रियाओं के दो दिन बाद पूरे 9 लोगों को आज मुंबई में मकोका कोर्ट में पेश किया गया। साध्वी ने एटीएस पर गंभीर आरोप लगाए। मारपीट, टॉर्चर और अश्लील सीडी सुनाने जैसे तमाम आरोप लगाए गए। आश्चर्य ये है कि न सिर्फ साध्वी बल्कि बाकी सभी आठ आरोपियों ने भी लगभग ऐसे ही आरोप लगाए। मीडिया ने हाथो-हाथ खबर को लिया। चटखारे लेकर, साध्वी को बार-बार टॉर्चर किया।

बड़ी बात ये है कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि पूरे फील्ड वर्क के साथ एटीएस पर आरोपों की झड़ी लग गई। नेताओं से लेकर आरोपियों ने वैसा ही क्या जैसी प्लानिंग हुई। सरकारी वकील ने इसपर टिप्पणी भी की। अचानक इतने दिन हिरासत में रहने के बाद अचानक आज के दिन ही ऐसा क्या हो गया कि आरोपों के अलावा किसी और ने कोई बात ही नहीं की।

संभव है एटीएस अपने पुलिसिया रौ में हो। मानवाधिकार का उल्लंधन भी किया जाता हो। लेकिन सच्चाई ये है कि जिन लोगों पर धमाके कराने का आरोप है, उन्हें आसानी से कैसे छोड़ा जा सकता है। अगर कुल 11 लोग मालेगांव धमाके मामले में गिरफ्तार किए हैं तो फिर कोई तो बात होगी? कहते हैं पुलिस चाह ले तो बड़ी से बड़ी गुत्थी आसानी से सुलझा सकती है। ऐसे में अगर एक बड़ा मामला अंजाम की राह पर है तो फिर हर्ज ही क्या है।

अगर बटला हाऊस में घुसकर पुलिस आतंकियों को एनकाउंटर में मार सकती है तो फिर साध्वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और स्वयंभू शंकराचार्य दयानंद इसके दायरे में आता है तो फिर हैरानी किस बात की। गुनाह तो गुनाह है। वो चाहे एक के लिए किया गया हो या फिर सैंकड़ों के लिए। इसमें न तो हिंदू होता है और न ही मुसलमान।

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
आप शायद इस मुल्क में नहीं रहते. यहाँ हिंदू मेजोरिटी है. और मेजोरिटी कभी मुल्क के साथ गद्दारी नहीं करती.मेजारिटी को हक हासिल है कि वह मुल्क के गद्दारों के साथ ऐसा ही सुलूक करे जैसा इन क़ौम परस्तों ने किया. ए.टी. एस. मुल्क की दुश्मन है जो इन मामूली बातों को नहीं समझती.आपके कानों में आए दिन होने वाली ये बातें नहीं पड़ीं. खैर अब से जान लीजिये किसी अदालत में इतना दम नहीं है कि इन्हें सज़ा दे सके. सजाएं जिन लोगों को मिलती हैं वह और होते हैं. साध्वी जी का रास्ता वह है जिसपर चलकर प्राइम मिनिस्टर होने के ख्वाब देखे जाते हैं. सज़ा काटने के नहीं.
Gyan Darpan ने कहा…
आतंकवादी घटनाओ की पुलिस जाँच में जिस तरह से राजनेतिक दखल बढ़ रहा है उससे ही ये भ्रम फ़ैल रहे है कि लोग बाटला हाउस मुतभेड को फर्जी बता रहे है और एसा ही साध्वी के मामले में हो रहा है

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