काश! ये साल न आता

12 जनवरी से आगे
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निरंजन को समझ नहीं आया कि क्या हो गया। वो धड़ाम से सड़क के उपर उछला और धम्म से गिरा। कुछ देर पहले तक बीवी,बच्चे और बुढ़ी मां के लिए सपने बुनने वाले निरंजन की आंखों के सामने स्याह और लंबी आकृति नाचने लगी। और फिर उसकी आंखों ने हमेशा के लिए सपने देखना बंद कर दिया। घर का चिराग सड़क पर चली तेज आंधी में बुझ गया और देखते ही देखते खो गया।

लड़खड़ाती गाड़ी से एक सज्जन निकले। उन्होंने गालियों की बौछार कर दी। लेकिन उन पढ़े लिखे सज्जन की हालत ऐसी थी कि वो ठीक से खड़ा बी नहीं हो पा रहे थे। नए साल का जश्न मनाकर किसी होटल से लौट रहे थे। उन्हें पता था कि गलती उनकी है पर वो इस बात को मानते कैसे। महानगर के कल्चर है अपनी गलतियों पर पर्दा डालना और दूसरों पर थू-थू करना। अगर आदत नहीं है तो लोग इसे अर्जित कर लेते हैं। तभी कहीं से पीसीआर वैन आ गई। पुलिस ने निरंजन को जैसे तैसे उठाया और पास के अस्पताल में भर्ती कराया। लेकिन निरंजन की किस्मत में नया साल देखना नहीं लिखा था।

पुलिस ने उन अंग्रेजी दां सज्जन को गिरफ्तार किया। लेकिन तमाम बड़े लोगों की पैरवी और सिफारिश के आगे पुलिस नतमस्तक हुई। सज्जन हंसते हुए घर गए। लोगों के पूछने पर जवाब दिया--क्या बताऊं आइसक्रीम वाला बीच में आ गया था, मैंने बचाने की पूरी कोशिश की। पर क्या किया जा सकता है।

निरंजन का घर बिखर गया। बुढ़ी मां की ज़िंदगी भले ही किसी तरह गुजर जाएगी पर उसके बच्चे और बीवी का क्या होगा? समय के साथ निरंजन की मौत भी लोगों की नज़र से ओझल हो जाएगी। पर सवाल ये है कि निरंजन की मौत का जिम्मेदार कौन है? नशे में धुत्त सज्जन? सिफारिश के आगे नतमस्तक पुलिस या फिर ज़िंदगी की जद्दोजहद? संभव है आज निरंजन है कल कोई और हो और परसों हमारी बारी हो.......

January 18, 2008 6:43 AM

टिप्पणियाँ

प्रिय धीरज, बहुत दिनों के बाद तुम्हारा लिखा हुआ कुछ पढ़ा। अच्छा लगा। जिस घटना की बात की है तुमने, उससे वाकिफ हूं और ऐसी ही पीड़ा से गुजर चुका हूं। लिखते रहना लगातार। एक साल पहले मैंने भी ब्लोग बनाया था अपना, पर लगातार लिख नहीं पाया। खैर, अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए फिर से बधाई।

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