बखिया उधेड़- फिल्म तनु वेड्स मनु रिटर्न्स


                  
           



(1)    अगर सिर्फ दर्शकों की तालियां ही किसी फिल्म की सफलता का पैमाना है तो फिर तनु वेड्स मनु रिटर्न्स सफल फिल्मों में शुमार है।
(2)    अगर फिल्म की कहानी में दम न हो और उसमें जबरदस्ती ऑक्सीजन चैंबर लगाकर जान डालने के लिए पटकथा को कसा जाए तो फिर तनु वेड्स मनु रिटर्न्स जानदार फिल्म है।
(3)    अगर फिल्में सिर्फ अच्छे डायलॉग की बदौलत चलती हैं, पंच लाइन की भरमार की बदौलत चलती हैं तो तो फिर तनु वेड्स मनु रिटर्न्स बेहतरीन है।
(4)    अगर सिर्फ अभिनय के आधार पर फिल्में चलती हैं तो फिर तनु वेड्स मनु रिटर्न्स शानदार फिल्म है।
(5)    अगर फिल्म में देश, काल और समाज की चिंता न की जाए और दर्शकों का मनोरंजन करना ही एकमात्र उद्देश्य है तो फिर तनु वेड्स मनु रिटर्न्स भरपूर मनोरंजन करने वाली फिल्म है।
(6)    और अगर फिल्मों में पटकथा के हिसाब से समय और समाज को तोड़ मरोड़कर पेश करने की आज़ादी है तो फिर तनु वेड्स मनु रिटर्न्स फिल्म में कोई कमी नहीं है।
ऐसे अगर और भी हो सकते हैं। लेकिन फिलहाल इतना ही। अब जबकि फिल्म तनु वेड्स मनु रिटर्न्स की चतुर्दिक वाहवाही हो रही है, ऐसे में धारा के विपरीत एक कदम भी चलना ख़तरे से खाली नहीं है। पर कोई बात नहीं। एक आम दर्शक के नाते जो मुझे समझ में आया वो मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूं।
ऊपर जितनी भी बातें लिखी हैं वो सब असल में फिल्म तनु वेड्स मनु रिटर्न्स की खासियत हैं। पर सब के साथ अगर जुड़ा है। फिल्म तनु वेड्स मनु रिटर्न्स एक पति-पत्नी की ऐसी कहानी है जो महज चार साल में एक दूसरे से ऊब चुके हैं और मामूली आपसी झड़के को तिल का ताड़ बना देते हैं। मामला एक दूसरे से सम्बन्ध तोड़ने की नौबत तक आ जाता है। लेकिन भारतीय परंपराओं का निर्बाह करते हुए पति-पत्नी फिर से एक दूसरे के हो जाते हैं। इसी कहानी को बताने के लिए निर्देशक आनंद राय ने अपने होनहार लेखक हिमांशु से ताना-बाना बुनवाया और इरोज़ ने उसको बाज़ार में बड़े हाहाकारी तरीके से उतारा।
फिल्म की शुरूआत तो शोमैन राजकपूर साहब की याद के साथ होती है। लेकिन उसके तुरंत बाद आपसी संबंधों से त्रस्त पति-पत्नी एक दूसरे की बखिया उधेड़ते हुए नज़र आते हैं। इस पूरे सीन के दौरान कई ऐसे ठेठ शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है जो दर्शकों के लिए नया और मज़ेदार लगता है। पर साथ में यह दिखाने की कोशिश होती है कि एक स्मॉल टाउन की लड़की किस तरह अपने पति को नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। शुरुआती सीन में ही कानपुर की एक लड़की अपने पति को पागल खाने में बंद कराकर खुश होती है और ज़िंदगी को रंगीन बनाने के लिए लंदन से सीधा कानपुर आ जाती है। कानपुर आने के दौरान एक पत्नी को अपने पागल पति पर तरस भी आता है और वो उसे पागलखाने से निकालने का इंतज़ाम भी करती है। यहां तक तो आपका हाजमा ठीक रहता है पर जैसे ही पति बाहर निकलता है और वो अपनी पत्नी को घृणा करने वाला मैसेज देता है, बस उसके बाद तो मानों पत्नी तनु के पैरों में जैसे पहिया लग जाता है। मस्तमौला तनु अपनी मस्ती का सामान ढूंढने लगती है। पुराने सारे मित्रों के यहां जाती है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कोई नहीं मिलता जो उसकी प्यासी आत्मा को तृप्त कर सके। अंत में कानपुर में रहने वाला उसका पुराना प्रेमी और धोड़ी चढ़ने के बाद भी शादी से वंचित रह जाने वाला ठेकेदार राजा अवस्थी मिलता है। हालांकि राजा अवस्थी अपने पहले ही सीन में साफ करता है कि उसकी शादी तय हो चुकी है। लेकिन अफसोस शादी कानपुर में नहीं, यूपी में नहीं बल्कि हरियाणा के झज्झर में जाट लड़की से तय हुई है। दूर के ऐसे कौन से रिश्तेदार थे उस जाट लड़की के, जो अपनी बेटी का हाथ दूसरे गोत्र में नहीं बल्कि दूसरे राज्य में अवस्थी परिवार में देने को राजी हो गए। बहरहाल, लंदन से अपने पति को दो कौड़ी का साबित कर कानपुर आने वाली तनु राजा अवस्थी के साथ घूमने लगी। राजा अवस्थी को भी लगा आती हुई लड़की वो भी पूर्व प्रेमिका को हाथ से जाने क्यों दिया जाए। दोनों मिलने जुलने लगे, फिल्में साथ देखने लगे।
इसी दौरान दिल्ली लौटे और तनु के हमले से टूटे दिल लिए डॉक्टर मनु को तनु की हमशक्ल लड़की दिख गई। कहते हैं प्यार अंधा होता है पर आकर्षण कई बार जानलेवा होता है। डॉक्टर मनु ने भी वही किया जो तनु ने उनके साथ किया। वो तनु की हमशक्ल लड़की कोमल का पीछा करने लगते हैं। अभी जबकि तलाक पर कोर्ट का मुहर तक नहीं लगता, महज दोनों तरफ से एक-एक नोटिस का आदान-प्रदान किया गया, डॉ मनु शर्मा हमशक्ल लड़की कोमल के घर हाथ मांगने पहुंच जाते हैं। कोमल का भाई प्रेम विवाह के पक्ष में रहता है पर उसके ज़ेहन में एक बार भी नहीं आता कि उसकी बहन बीस साल की और उसका जीजा चालीस साल का है। जाट को प्रगतिशील दिखाना अच्छी बात है पर इतना मत दिखाओं की पीकू की याद ताज़ा हो जाए।
फिल्म में अपने अभिनय से दर्शकों को बांधे रखने वाले दीपक डोभरियाल का एकतरफा प्रेम कई सवाल उठाता है। ऐसा लगता है दीपक के प्रेम को जबरन ठेल ठालकर पंजाब पहुंचाया गया ताकि स्वरा भास्कर और कोमल का आमना-सामना हो सके। क्योंकि जिस तरह से दीपक अपनी प्रेमिका को भगाकर ले जाते हैं उसके बाद न तो प्रेमिका दिखती है और न ही उसके प्रति दीपक का कोई लगाव। समझ में नहीं आया कि बाद में वो लड़की एक प्लेट में खाना किस मुंह से खा रही थी जबकि उसका भाई झज्झर काफी पहले आ चुका था।
मज़ेदार बात ये है कि एक तरफ कोमल के गांव में अब भी संकीर्ण समाज दिखाई देता है लेकिन पहले तो अपने घर में भगाकर एक लड़की को लेकर आई उसके बारे में कोई नोटिस नहीं करता। और बाद में उसके भाई के एक जबदस्त लेक्चर से सारा समाज एकदम से प्रगतिशील हो जाता है। और तो और गांव में एक लड़की आधी रात को सरेआम शराब के ग्लास के साथ घूम रही है। आधी रात को अपनी किस्मत जानने के लिए एक बंगाली बाबा को भी नींद से जगा देती है और उसी समय एक पार्लर को भी खुलवा देती है, लेकिन पूरे गांव में उसे कोई कुछ नहीं बोलता। अगर इतनी तेजी से समाज बदलने लगा तो देश न जाने कितना तरक्की कर जाता।
खैर, अपनी बेटी का परिवार उजड़ते तनु के मां-बाप सरेआम देख रहे हैं, सिर्फ देख ही नहीं रहे हैं बल्कि मज़े ले रहे हैं, दावतें उड़ा रहे हैं पर उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं। वाह, ऐसा न तो छोटे शहरों में होता है और न ही बड़े शहरों में। लेकिन कहा जाता है फिल्मों में सब तरह की आज़ादी है।   
कोमल के त्याग को बड़ा दिखाने के चक्कर में आनंद राय ने शादी की संस्था को दो कौड़ी का साबित कर दिया। शादी के दौरान छह फेरों तक पति-पत्नी के बीच लिए गए सारे वचन बिना मतलब के हैं। अगर सातवां ले लिया तब तो फिर लक्ष्मण रेखा खींच जाएगी। या तो जीवन में सभी सातों फेरों का मतलब है या फिर किसी का नहीं। छह फेरों के बाद भी शादी के पाक रिश्ते को बेकार करार दिया जा सकता है, फिल्म तनु वेड्स मनु रिटर्न्स ने साबित कर दिया।
सब को मालूम है दर्शक को न तो इतनी गहराई में जाना है और न ही दर्शक इसके लिए इतना कष्ट उठाता है। एक बार फिर से सफल और सार्थक फिल्मों को लेकर मेरे दिमाग में बहस छिड़ गई है।
फिल्म की जान है कंगना का अभियन। पहला हाफ दीपक डोभरियाल का है तो दूसरा हाफ कंगना है। लेकिन पूरी फिल्म में कंगना छाई हुई है। कहानी के हिसाब से पहला हाफ काफी अच्छा है, मनोरंजन और डायलॉग दोनों हैं। पर दूसरा हाफ कहानी के फ्लो को थोड़ा रोकता है।
यह तय है कि फिल्म बिजनेस के लिहाज से काफी सफल रहेगी पर जहां तक राजकुमार हिरानी के फिल्मों से तुलना की जाए तो आनंद राय अभी बहुत पीछे हैं। राजू का तरीका मनोरंजन के साथ एक संदेश देने का रहता है इसलिए कहानी में भी दम रहता है। कहानी, पटकथा और संवाद तीनों का जो अद्भुत संगम वहां दिखता है वो मेरे हिसाब से आनंद राय में फिल्म तनु वेड्स मनु रिटर्न्स में मिसिंग है।
(बखिया उधेड़ किसी हीन भावना से ग्रसित होकर नहीं लिखी गई है। उद्देश्य है अन्य सवालों से आपको रू-ब-रू कराने का।)



टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
Looking to publish Online Books, in Ebook and paperback version, publish book with best
Book Publisher India|p[rint on demand india

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

'मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा'

बदल गई परिभाषा

कौवे की मौन सभा में कुटाई