ए महाराज कौन किसको बदलता है ?

मुझे याद नहीं कि बदलते हालात में कौन किसको बदल रहा है---वक्त ने हमें बदला है या हम हालात के मारे हैं। कुछ तो ऐसा हो गया है जिसे देखकर पहले हमारे और आपके जेहन में खून खौलने लगता था अब उसे इग्नोर माकर आगे चल देते हैं। जिसके लिए पहले हम घंटों मशक्कत करते थे अब उसपर ध्यान भी नहीं देते। लगता है कौन किसके लिए करता है। अगर मेरे साथ ऐसा हो जाएगा तो कौन आएगा सामने। बस हम निकल जाते हैं उससे आगे।

कल की बात है। सड़क पर एक बाइक वाले का एक्सिडेंट हुआ। दर्द से कराहता रहा। लोग आसपास से गुजरते रहे। पर किसी ने रूककर उसे उठाने की जहमत नहीं ली। मैं भी उन्हीं में से एक था। ऑफिस जाने में पहले से ही देर हो गई थी। और फिर ये भी लगा कि अगर यहां रूक जाऊंगा तो बॉस को लगेगा नए तरीके का एक और झूठ। आखिर क्या करत। गाड़ी वहां से ऐसे निकाली जैसे मैंने कुछ नहीं देखा। कमोबेश हम सब की यही हालत है। हम तमाम तरह की बड़ी बातें करते हैं। तमाम बड़े विषयों पर ब्लॉग लिखते हैं। बुद्धिजीवी कहलाते हैं पर सब दिखावा। मुफ्त में ज्ञान देने का अवसर मिले तो न जाने कितने समय होते हैं हमार पास। पर जब किसी की मदद के लिए समय निकालने की बात की जाए तो हर कोई एक दूसरे से ज्यादा व्यस्त है। व्यस्तता इतनी कि अगर वो मदद करने में जुट जाएगा तो दुनिया भर के लोग आज सांस नहीं ले पाएंगे।

गुनहगार जाहिर तौर पर हम हैं। पर क्या हालात हमारे ऐसे हैं कि हम गुनहगार होते जा रहे हैं या फिर हम आलसी, संकीर्ण और परम स्वार्थी होते जा रहे हैं। क्या आपके साथ भी ऐसा ही होता है?

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