आखिर क्या चाहती है भारत सरकार




दिलों को जोड़ने वाला खेल और भारत में जुनून और धर्म का दर्जा रखने वाला क्रिकेट एक बार फिर राजनीति और कूटनीति की भेंट चढ़ चुका है। मुंबई पर आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंध फिर से नाजुक दौर में पहुंच गए। और दोनों देशों के संबंधों के उतार-चढ़ाव से यहां का क्रिकेट भी नहीं बच पाया। भारत-पाक के तनावपूर्ण रिश्ते के असर से टी20 चैंपियंस लीग भी नहीं बच पाया है। अब जो खबर आ रही है वो बेहद चौंकाने वाली है। भारत में 8 अक्टूबर से होने वाले चैंपियंस लीग के मैचों की कमेंट्री वसीम अकरम नहीं कर पाएंगे। खबरों के मुताबिक पाकिस्तानी के पूर्व तेज गेंदबाज और कमेंटेटर वसीम अकरम को कमेंट्री करने से रोक दिया गया है। पाकिस्तान के अखबार जंग के दावे को सही मानें तो भारत सरकार ने अकरम को इसकी इजाजत देने से इनकार कर दिया है। अकरम इस फैसले से भौंचक हैं। अकरम से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा--मुझे इस फैसले की जानकारी मिली है। मुझे नहीं पता कि इस फैसले के पीछे भारत सरकार है या नहीं। मुझे पता करने दीजिए कि असलियत क्या है।

अकरम इस वक्त दक्षिण अफ्रीका में हैं। वहां वो चैंपियंस ट्रॉफी के मैचों की कमेंट्री कर रहे हैं। खबरों के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका में ही अकरम को चैंपियंस लीग के आयोजकों की तरफ से बताया गया कि उन्हें कमेंट्री के लिए भारत आने की जरूरत नहीं है। अकरम को बताया गया कि भारत सरकार ने बीसीसीआई को हिदायत दी कि वो अकरम को चैंपियंस लीग के दौरान भारत न बुलाए। यहां हम आपको ये भी याद दिला दें कि चैंपियंस लीग में जो टीमें हिस्सा ले रही हैं, उनमें दुनियाभर की टीमें हैं... सिवाय पाकिस्तान के। इससे पहले आईपीएल सीजन 2 में भी पाकिस्तान के किसी खिलाड़ी को खेलने की इजाजत नहीं दी गई थी। मुंबई पर आतंकी हमले के बाद भारत-पाक संबंध में आई कटुता के बाद ये बदलाव हुआ था।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या अकरम भारत-पाक के खराब संबंधों के शिकार हो गए? क्या अकरम दो देशों के खराब रिश्तों की बलि चढ़ गए? पाकिस्तान का मीडिया इस फैसले के पीछे जहां बीसीसीआई और भारत सरकार का हाथ देख रहा है... तो वहीं चैंपियंस लीग के ब्रॉडकास्टर ईएसपीएन-स्टार स्पोर्ट्स की राय है कि चूंकि चैंपियंस लीग में एक भी पाकिस्तानी खिलाड़ी हिस्सा नहीं ले रहा है... इसलिए अकरम को पैनल में नहीं रखा गया था।

अगर ब्रॉडकास्टर का ये दावा हजम कर लिया जाए तो इस फैसले को भारत-पाक रिश्तों से अलग करके देखा जाना चाहिए। लेकिन ये दावा इतनी आसानी से हजम नहीं होता। क्रिकेट के जानकार होने की वजह से और बेहतरीन कमेंटेटर होने की वजह से भला कोई ब्रॉडकास्टर क्यों चाहेगा कि अकरम उसके पैनल में नहीं हो। खेलों की समझ और खेलों को लेकर पैने नजरिये की वजह से दुनिया के किसी भी क्रिकेट मैच की कमेंटरी की कूबत अकरम रखते हैं।

ऐसे में फिर यही लगता है कि भारत-पाक के तनावपूर्ण रिश्ते का असर खेल के मैदान से निकलकर कमेंट्री बॉक्स में जा पहुंचा है। तमाम कटुता को भुलाने में अहम भूमिका निभाने वाला खेल धीरे-धीरे कूटनीति का जरिया बन गया है।

पाकिस्तानी खिलाड़ियों के लिए चैंपियंस लीग में कोई जगह नहीं। लेकिन पाकिस्तान का कोई खिलाड़ी अगर दूसरे देश के किसी लीग से खेल रहा हो तो? ऐसे में क्या होगा। सवाल थोड़ा टेढा है... लेकिन इससे बचा नहीं जा सकता।

चैंपियंस लीग में एक टीम ऐसी शामिल हो रही है... जिसका हिस्सा होगा एक पाकिस्तानी खिलाड़ी। ये लीग है ब्रिटेन का... काउंटी टीम का नाम है ससेक्स और इसके पाकिस्तानी सदस्य का नाम है यासिफ अराफात। चैंपियंस लीग में ससेक्स के जिन खिलाड़ियों को हिस्सा लेना है उसमें यासिर अराफात भी शामिल है। यानी सेसेक्स की तरफ से एक पाकिस्तानी खिलाड़ी चैंपियंस लीग का हिस्सा हो सकता है।

ऐसे में अब बीसीसीआई का रुख क्या होगा? क्या भारत सरकार को दूसरी टीम के जरिये आने वाले पाकिस्तानी खिलाड़ियों के नाम पर भी आपत्ति होगी? यासिर अराफात को लेकर बीसीसीआई और भारत सरकार के रवैये का इंतजार पाकिस्तान के कई खिलाड़ियों को भी रहेगा।

क्या क्रिकेट में सियासी कूटनीति जायज है---आपकी राय का इंतजार है....

टिप्पणियाँ

अजय कुमार झा ने कहा…
इस पोस्ट के माध्यम से बहुत ही सामयिक और सार्थक सवाल उठाये हैं आपने सुधा जी...आज एक आम आदमी के मन में यही सब उठ रहा है..आभार ..

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