सीरियल का सुनहरा दिन




बात गए दिन सास-बहू और उनकी लड़ाई के। हिंदी सीरियल में नया ट्रेंड चल पड़ा है। सामाजिक कुरीतियों को नए सिरे से उजागर करने का। एक झटके में सात-आठ साल से चल रहे सास-बहू के सीरियल के दर्शकों में कमी आ गई। दर्शक को ऐसे सीरियल पकाऊ लगने लगे। दरअसल दर्शक बेहतर विकल्प की तलाश में थे। देश में टेलीविजन देखने वाले ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवार के दर्शक हैं। उन्हें बड़े और अमीर घरों के झगड़े तो शुरु में अच्छे लगे। सिर्फ इस वजह से मध्यवर्गीय परिवार के दर्शक ये जानना चाहते थे कि आखिर बड़े घराने के लोग किस कदर रहते हैं। उनकी दिनचर्या कैसी होती है। क्या उनके परिवार में कोई टकराव है या नहीं। क्या पैसे को लेकर उनमें आपस में खींचतान मचती है कि नहीं। हर इनटरटेंनमेंट चैनल पर छूआछूत की तरह ऐसे सीरियल चलने लगे। कई साल तक तो लोगों ने खूब चाव से देखा। पर एक तरह की चीज लंबे समय तक कोई नहीं झेलता। परिवर्तन शाश्वत सत्य है। टीवी दर्शक विकल्प की तलाश में थे। जैसे ही विकल्प मिला कि एक सिरे से तमाम सास-बहू के सीरियल धाराशायी हो गए।

ज़ाहिर है इसका सारा श्रेय जाता है इंटरटेंनमेंट चैनल कलर्स को। कलर्स ने एक प्रयोग किया। उसने जिंदगी के सभी रंगों को एक साथ टीवी स्क्रीन पर उतारने की कोशिश की। कलर्स ने प्रयोग के चक्के पर बालिका वधू को चढ़ाया। हालांकि कलर्स को इस बात का इल्म था कि अगर नहीं चला तो उसके चैनल को करारा झटका लगेगा। पर दर्शक ऐसे ही किसी प्रयोग के इंतजार में थी। पब्लिक को प्रयोग पसंद आया। पब्लिक को एक नई चीज देखने को मिली। नई दिक्कतों को जानने का मौका मिला। कलर्स ने बालिका वधू के बहाने राजस्थान के दो तबकों को एक साथ दिखाने का मौका मिला। परंपरा और रुढ़िवादी मानसिकता को समझने का मौका मिला। समाज में फैली विषमताओं को बारीकी से महसूस किया। उन तमाम छोटी बड़ी दिक्कतों को जानने का अवसर मिला कि रुढ़िवादी मानसिकता की वजह से हर तबका किस कदर त्रस्त है।

इस शुरुआत ने इंटरटेंनमेंट चैनल में खलबली मचा दी। बालिका वधू का हर तरफ डंका बजने लगा। फिर क्या था। प्राइम टाइम में लंबे समय से काबिज सीरियल को तगड़ा झटका लगा। एड एजेंसियों ने भी पुराने ठहरे हुए सीरियल को ठेंगा दिखाना शुरु किया। मजेदार बात ये है कि खुद कलर्स ने भी एक ऐसा सीरियल रात साढ़े दस बजे शुरु किया 'जाने क्या बात हुई' । राजा चौधरी की पूर्व पत्नी श्वेता तिवारी अहम भूमिका में थी। कुछ हफ्ते इस स्लॉट पर चलाने के बाद चैनल ने तय किया कि वहां एक और परंपरा और रूढ़िवादी मानसिकता का सीरियल भर दिया और जाने क्या बात हुई को शाम साढ़े छ बजे कर दिया।

कलर्स की देखादेखी बालाजी टेलीफिल्मस भी रूढ़िवादी मानसिकता और राजस्थानी बैकग्राउंड को पकड़ने में लग गया है। जाहिर है जो पहला है वो तो सबसे पहले ही देखा जाएगा। बस डर इस बात का है कि सास-बहू की लड़ाई की तरह ही ये भी लंबा न खिंचने लगे।

टिप्पणियाँ

MANVINDER BHIMBER ने कहा…
balika vadhu mai har kirdaar apni baat kayede se kahne mai saksham hai ....apne shai kaha hai

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