धमाके में मेरी मौत हुई तो....



डरने लगा हूं लगातार हो रहे धमाके से। सोचता हूं अगर मेरी भी मौत किसी धमाके में हो गई तो क्या होगा? कई बार तो ये भी सोचता हूं कि धमाके में मेरी मौत हो गई और साथ में कोई आईडेंटिटी कार्ड नहीं रहा तो कोई मेरी लाश को कैसे पहचानेगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि मेरी भी लाश लावारिस कहलाएगी। खुदा से बस यही गुजारिश है कि अगर ऐसे धमाकों में मौत हो तो मेरी पहचान जरूर हो जाए। कितना जरूरी हो गया है आज की तारीख में खुद की पहचान बनाए रखना।

लगातार ये भी सोचता हूं कि अगर मेरी मौत हो गई तो क्या होगा? सबसे ज्यादा तकलीफ किसको होगी? जाहिर है पत्नी और बच्चे टूट जाएंगे। मेरे बिना मेरी पत्नी और बच्चे एक मिनट की भी कल्पना नहीं कर सकते। जानता हूं कि पत्नी खूब रोएगी। तमाम शिकायतें होगीं। रोते-रोते बातें करेगी। मुझसे बार-बार कहेगी...कहां चले गए तुम? आस पड़ोस के लोग और रिश्तेदार बार-बार मेरी पत्नी को ढाढस दिलाने की कोशिश करेंगे पर ऐसे समय में कौन रुकता है। जिंदगी की सबसे खराब घड़ी यही तो होती है। मेरी बेटी को मौत और जिंदगी की समझ होने लगी है। उसको पता है मौत का मतलब। वो जानती है कि जिसकी मौत हो जाती है वो वापस नहीं आते। वो पहले भी इसका एहसास कर चुकी है। लेकिन अपने पापा को न पाकर उसकी जिंदगी में कितना कुछ बदल जाएगा। कई वर्षों तक हर छोटी-बड़ी बात पर अपने पापा को याद करेगी। कई बार ये भी कहेगी कि पापा होते तो उन्हें कहना नहीं पड़ता, पापा होते तो अभी इस दिक्कत को दूर कर देते। काश! पापा होते। लेकिन बच्चे लाख कुछ भी कह लेते उनका सपना कम से कम उसके पापा के माध्यम से पूरा नहीं होता। मैं सोचता हूं...मेरा बेटा छोटा है। उसे अपने पिता की याद उतनी नहीं आएगी जितनी बेटी को आएगी। संभव है अपनी दीदी को बार-बार ये कहते हुए सुनता तो शायद उसके जेहन में भी ये बात धीरे-धीरे बैठने लगती।

मेरी मौत के बाद दफ्तर के सह्दय लोग कुछ दिन तक तो मेरी पत्नी और मेरे बच्चों से संपर्क बनाए रखते। फिर धीरे-धीरे उनकी याद भी ढीली पड़ती जाती और एक समय बाद उनके जेहन में भी एक हल्की सी याद रहती। बाद में किसी चर्चा के दौरान जब पुरानी बात होगी तो शायद मैं वहां याद किया जाऊं।

दफ्तर में काम करने वालों के लिए पहली प्रतिक्रिया तो होगी...ओह!नो। ये क्या हो गया। उसके बाद वो ये भी कहेंगे बेचारा बड़ा अच्छा आदमी था। संभव है जीते जी चाहे नाम में दम कर रखा हो। पर मौत के बाद यकायक अच्छा हो जाऊंगा। कुछ तो इसलिए अच्छा कहते हैं कि उन्हें कहना होता है। और जो वाकई आपके अच्छे गुण के प्रशंशक हैं उनका अपना स्वार्थ रहा है। संभव है मैंने पहले उनके मनमाफिक बात की होगी। संभव है मैं उनकी ज़रूरतों में काम आया हूंगा। वरना खाली-खाली कोई अच्छा नहीं कहता।

लेकिन अंत में एक बात कहना चाहता हूं---मौत, जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई है। एक दिन तो आनी है। इसलिए इससे हम जितना भागेंगे उतनी ही तकलीफ होगी। हर किसी को मान कर चलना चाहिए कि अगर मौत हुई तो विकल्प क्या होगा। क्योंकि बिना विकल्प के जिंदगी संभव नहीं है। इस अटल सत्य को स्वीकारना ही होगा।

टिप्पणियाँ

भैय्या काहे को ऐसी सोचत हो . शुभ शुभ बोलो और लम्बो जीवन पाके ब्लागरो को जोडो . वाकई उम्दा लिखो है सो बधाई भेजत हो .
मसिजीवी ने कहा…
अक्षरग्राम पर एक पोस्‍ट डाली जाएगी, श्रृद्धांजली की कुछ पंक्तियॉं टिप्‍पणी में।

हम सब अपने हिस्‍से के धमाके के इंतजार में जी रहे मुआवजाकांक्षी भर हैं।
खुली किताब ने कहा…
वाकई मरने के बाद हमारी कीमत क्या है इसका सही आकलन सरकार कर देती है। एक लाख, दो लाख या फिर पांच लाख रुपए। इससे ज्यादा की कीमत नहीं होती हमारी। मतलब साफ है जीते जी चाहे आपकी कीमत कोई न लगा पाए। मरने के बाद तो कीमत लगना तयशुदा है। सही लिखा विजेंद्र ने।
धीरज

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

'मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा'

बदल गई परिभाषा

कौवे की मौन सभा में कुटाई