' डिप्रेशन में आडवाणी '


पांच राज्यों के विधानसभा के नतीजे से बीजेपी को सबक लेने की जरूरत है। बीजेपी के थींक टैंक अरुण जेठली जैसे नेताओं को तो खासतौर से। उन्हें समझ लेना चाहिए कि राष्ट्रीय मुद्दे अब मायने नहीं रखते। जनता को विकास की चीजें नजर आएंगी तो फिर कोई कुछ भी कर ले...ऊंट उसी करवट बैठेगा। इन नतीजों ने गुजरात के तेजतर्रार मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को भी एक झटका दिया है। नरेंद्र भाई मोदी ये कतई न समझें की बीजेपी में सिर्फ वही एक ऐसे नेता नहीं बच गए हैं जो अपने बलबूते पर चुनाव जीत सकते हैं।
शिवराज सिंह चौहान और चावल वाले बाबा यानी रमन सिंह उनके सामने सामने हैं। मजेदार बात ये है कि इन दोनों मोदी के फार्मूले का इस्तेमाल भी नहीं किया। बीजेपी में खुद को एकमात्र कद्दावर नेता मानने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने भोपाल में बड़ा सोच समझकर हिंदूत्व का कार्ड खेलने की कोशिश की। साध्वी प्रज्ञा का जमकर हिमायत किया। लेकिन उसके बाद भी शिवराज सिंह ने विकास के मुद्दे को ही अपना एजेंडा बनाए रखा। बात बन गई। उधर चावल वाले बाबा की छवि हमेशा से बड़ी साफ सुथरी रही है। हैम्योपैथिक डॉक्टर रमन सिंह ने सिर्फ विकास को ही एकमात्र आधार बनाया। न तो उन्होंने भड़काऊ भाषण दिए और न ही मोदी का अनुसरण किया। जनता पहचानती है। जानती है कौन क्या बोल रहा है।

बड़े पत्रकार और बीजेपी के कोटे से राज्यसभा के सांसद चंदन मित्रा ने काउंटिग के दिन कहा--आडवाणी जी से जब उनकी मुलाकात हुई तो उन्हें समझ में आया कि वो डिप्रेशन में हैं। अगर एनडीए की तरफ से भावी प्रधानमंत्री आडवाणी जी डिप्रेशन में हैं तो निश्चय ही कोई बड़ी बात है। आडवाणी जी को इस बात का एहसास हो चला है कि अब प्रधानमंत्री बनने का सपना अधूरा रह जाएगा। जाहिर है मुरली मनोहर जोशी और भैरोसिंह शेखावत के लिए ये अच्छी खबर है। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं होगा। संभव है बीजेपी को दिल्ली की हार सबसे ज्यादा सता रही होगी। दिल्ली में बीजेपी ने आखिरी के 48 घंटे में अपना सबकुछ झोंक दिया था। सौ से ज्यादा रैलियां कराईं। स्टार प्रचारकों की भरमार थी। आडवाणी से लेकर मोदी और सिद्धू सब जनता को बेवकूफ बनाने में जुटे रहे। पर शीला दीक्षित का जबाव नहीं। दिल्ली में आतंकी हमले और डिमोलेशन जैसे तमाम ऐसे उदाहरण हैं जिसके आधार पर ये अंदाजा लगाया जाता था कि इस बार तो शीला का सवाल ही नहीं है। लेकिन एक बात तय है दिल्ली में खासतौर से इलीट क्लास को शीला दीक्षित की जीत पर खुशी है। वो किसी भी सूरत में बीजेपी को पचा नहीं पा रहे थे।

सौ बात की एक बात। अगले तीन-चार महीने बाद क्या होगा इसकी एक झलक तो लोगों ने दे दी है। पर ये भी तय है कि जीत के लिए अब राष्ट्रीय मुद्दे नहीं बल्कि स्थानीय मुद्दे मायने रखेंगे।

अगर आप सहमत नहीं हैं तो बताएं क्या होगा?

टिप्पणियाँ

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…
हम भारतीय इतिहास का वो सबसे शर्मनाक हादसा नहीं भूल सकते ,जब स्वयं को राष्ट्रवाद का प्रतिनिधि बताने वाली बी.जे.पी. सरकार का विदेश मंत्री तीन आतंकवादियों को लेकर कंधार गया था। इस निर्लज्ज तर्क के साथ कि सरकार का दायित्व अपहरण कर लिए गए एक हवाईजहाज में बैठे लोगों को बचाना था।.
आज मुम्बई हमले के दौरान यही महापुरूष चीख-चीख कर कांग्रेस को दोषी ठहरा रहे थे, ओर भविष्य मे इस देश के प्रधानमन्त्री बनने के सपने देख रहे थे.
वाह रे! लौह-पुरूष
Udan Tashtari ने कहा…
आडवानी जी डिप्रेशन में?? Who Cares!!!

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