26/11 एक महीने बाद



रोशनी को इस बात का ठीक-ठीक एहसास नहीं है कि उसके पापा कहां चले गए हैं। मम्मी को टूटकर घंटों रोते देखती है, दादी को रोते देखती है तो उसे एक मिनट के लिए लगता है कि पता नहीं ये लोग इतना क्यों रो रहे हैं? दादा जी तो कहते हैं कि पापा काम पर गए हैं। काम खत्म होते ही घर आ जाएंगे। लेकिन सबके बुलाने के बाद भी जब पापा नहीं आते तो रोशनी उनसे शिकायत करती है। कहती है पापा बहुत बुरे हैं। आएंगे तो उनसे मैं बात नहीं करूंगी। और जब प्यार करेंगे, मनपंसद चीज लाकर देंगे तब उनके पास जाऊंगी।

रोशनी बच्ची है। महज पांच-छह साल की मासूम। घर वालों ने उसे ये कहकर बहला दिया है कि उसके पापा काम पर गए हैं और जब आएंगे तो उसके लिए बुक और पेंसिल लाएंगे। बस वो उस दिन की ताक में है कि कब उसे नई किताब और पेंसिल मिलेगी।

रोशनी के पापा मुंबई हमले में आतंकी इस्माइल की गोलियां के शिकार हो गए। रोशनी के पापा ठाकुर वाघेला मुंबई के जीटी अस्पताल में काम करते थे। रात के तकरीबन ग्यारह बजे का समय रहा होगा। कुछ देर पहले ही ठाकुर अपने घर लौटा था। लेकिन इसी समय आतंकियों ने कहर बरपाना शुरु कर दिया। गोलियां उगलती बंदूकों ने लोगों को छलनी करना शुरु किया। हमले के बाद घायलों को अस्पताल में भर्ती कराने की सिलसिला शुरु हुआ। ऐसे में अस्पताल के सभी स्टाफ को काम के लिए बुलाया गया। ठाकुर को भी अस्पताल से फोन गया। ठाकुर अस्पताल के लिए तैयार होने लगा। लेकिन मां ने जोर दिया कि खाना खाकर अस्पताल जाओ। बस यही चीज ठाकुर की मौत बनकर खड़ी हो गई। चूंकि आतंकी हमले की वजह से कई इलाकों में ब्लैक आउट कर दिया गया। इलाके को अंधेरे में डुबोने का आदेश दिया गया। लेकिन ठाकुर वाघेला को दफ्तर जाना था ऐसे में घर में बत्ती जलानी पड़ी। लेकिन कोई क्या जानता था कि बत्ती जलते ही आतंकी आ धमकेंगे। अजमल कसाब वहां पहुंचा। दरवाजा खुला देख उसने ठाकुर से पानी मांगा। ठाकुर को इस बात का कतई इल्म नहीं था कि जिसे वो पानी पिला रहा है वो लोगों के खून से नहा चुका है। ठीक इसी समय कसाब के आतंकी दोस्त इस्माइल ने गोलियां चलाईं और ठाकुर को छलनी कर दिया। इस घटना की चश्मदीद बनी ठाकुर की मां। अपने बेटे खून-खून होता देख मां बेहोश होकर गिर पड़ी। और जब मां की नींद खुली तो ठाकुर हमेशा के लिए सो चुका था। जब से ठाकुर सोया है घर का हर सदस्य जाग रहा है। किसी को नहीं पता ये जागरण कितना बड़ा है। जिसके बदौलत घर चलता था वो तो अब उस पार चला गया। जहां जाने वाले से कोई संवाद नहीं होता। इस तरफ वाले चाहे जितनी आवाज लगा लें। वो न तो जवाब देता है और न उसे किसी की याद आती है।

सचमुच हम सब रंगमंच की कठपुतली हैं। जो मंच से उतर गया वो न जाने कहां भटक जाता है। किस ओर चला जाता है।
वाकई मौत सबसे बड़ा सच है। जिसे झुठलाया नहीं जा सकता।
धीरज

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