कौन लौटाएगा सिमरन की हंसी?




शिवराज पाटिल की उम्र कितनी होगी? 73 साल के पाटिल। अपनी इस उम्र में उन्होंने अपने घर में किसी को ऐसे बिलखते देखा होगा जैसे तड़प रही है पांच साल की मासूम सिमरन। शायद नहीं। राजनीति के जिस मकाम पर पाटिल साहब हैं कम से कम उससे तो नहीं लगता। बेसहारा और लाचार मासूम की तरह क्या उनके घर में कोई कभी रोया होगा? शायद नहीं। वजह है। धनी मानी परिवार से ताल्लुक रखने वाले पाटिल को बेबसी के आंसू के बारे में क्या पता। चलिए खुदा न करे। उन्हें इस उम्र में कुर्सी के अलावा किसी और चीज के लिए बेबसी के आंसू का एहसास हो। ऐसा नहीं कि वो पार्टी अध्यक्ष के तलवे चाटना नहीं जानते। धमाकों के समय भी तीन बार कपड़े बदलना नहीं जानते। ऐसे में भी बालों में जेल(क्रीम)लगाना नहीं जानते।
ऐसा नहीं कि सरेआम खुद को चमचा कहलाने में उन्हें कोई हर्ज है। इन सबके एवज में बस जो उन्हें नहीं जानना है उसके लिए बहुत ज्यादा प्रयास नहीं करते।

अकसर दफ्तर में कहा जाता है। जो काम नहीं करता है वो सबसे सुकून से रहता है और उसकी तरक्की तो पक्की होती है। नेतागीरी तो फिर बिना चमचागीरी के हो ही नहीं सकती। भले लोग उसे गॉड फादर की संज्ञा दें। पर वो विशुद्ध रुप से चमचागीरी से ज्यादा कुछ नहीं होती। पाटिल तो इस खेल में माहिर हैं। जाहिर है पाटिल जब चमचागीरी पर ध्यान देंगे तो मंत्रालय तो इसका खामियाजा भुगतेगा ही। और अगर मंत्रालय खामियाजा भुगत रहा है तो फिर धमाकों के बारे में पहले से पता कैसे चलेगा। इंटेलिजेंस सिस्टम भी वैसा ही काम करेगा जैसा पाटिल करते हैं। धमाके होते हैं तो होने दो। महिलाएं विधवा होती हैं तो होने दो। मासूम अनाथ होते हैं तो होने दो। किसको फर्क पड़ता है। मुआवजे का ऐलान तो कर ही आएंगे नेता। लाख, दो लाख, पांच लाख क्या ताउम्र उसकी जिंदगी के साथ चिपका रहेगा। उसके बाद कौन देखेगा पीड़ितों को। लेकिन पाटिल साहब ये सोच कर खुश न हों। जब लोगों की जुबान से बददुआएं निकलेंगी तो उसका नतीजा भुगतना पड़ेगा। बारी सबकी आएगी। स्वरुप अगल हो सकता है। दुख भोगने के तरीके अलग हो सकते हैं। पर चुकाना पड़ेगा। सिमरन के आंसुओं का कर्ज चुकाना होगा।


सिमरन को जब-जब देखता हूं गुस्सा और अफसोस होता है। मैं धमाकों के समय करोल बाग में ही था। धमाकों के बारे में पता चलते ही स्पॉट की तरफ भागा। वहां का हाल ऐसा था कि बयान करने का मतलब है खुद को धमाके से जुड़ी उन बारीक बातों को याद करना। सड़क पर खून और चीत्कार। भयानक कोहराम। लाशें बिछी थीं। खुद को बचाने की जद्दोजहद जारी थी। चूंकि बंजारे सड़क पर बैठे रहते हैं इसलिए सबसे ज्यादा नुकसान उनका ही हुआ। चूंकि करोल बाग में आमूमन भीड़ रहती है। इसलिए धमाके की चपेट में मार्केट में खरीददारी करने वाले भी आ गए। उसी अफरा तफरी में कहीं मदद कोने में रो रही थी सिमरन। धमाके में सिमरन ने अपने प्यारे पापा को, दादा को और बुआ को खो दिया। हालांकि मासूम सिमरन को पता नहीं कि ये लोग कहां गए। लेकिन धमाके का खौफ, दहशत उसके दिलोदिमाग पर इस कदर छा गई है कि वो उससे ऊबर नहीं पा रही है। उसकी हंसी कहीं खो गई है। सिमरन खामोश हो गई है।

क्या पाटिल में इतनी हिम्मत है कि वो सिमरन की हंसी लौटा दें। उसका बचपन लौटा दें। क्या पाटिल की खुफिया एजेंसी सिमरन के वे पल लौटा सकती है जिसमें वो अपने पापा के साथ हंसती खेलती थी। दादा के साथ मस्ती करती थी। कोई है जो सिमरन की हंसी लौटा दे।
ईश्वर उन सब लोगों को हिम्मत दे जिनको धमाकों ने उजाड़ दिया।

टिप्पणियाँ

Udan Tashtari ने कहा…
ईश्वर उन सब लोगों को हिम्मत दे जिनको धमाकों ने उजाड़ दिया।

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