'देखना पढ़ाई में मन न लग जाए'
राहुल के कमरे का दरवाजा बंद था। हॉल में बैठे उसके पापा की नज़र अचानक दरवाज़े पर गई। अरे! राहुल का दरवाजा बंद क्यों है? इतना बोलते-बोलते वो उठे और दरवाजे के पास आए। दरवाज़ा खुला था। धीरे से दोनों दरवाज़े को अलग करते हुए अंदर की तरफ झांका। अंदर कुर्सी पर बैठा राहुल सकपकाया। क्या कर रहे हो बेटा? दरवाज़ा बंद करके अंदर क्या कर रहे थे? पापा कुछ भी तो नहीं। बस ऐसे ही बैठा था। अपने अगले क्रिकेट मैच के लिए स्ट्रैट्ज़ी बना रहा था। सोच रहा था कि कैसे खेला जाए कि पहले से बेहतर किया जाए। ठीक है बेटा। सोचो, सोचो। मुझे अच्छा लगा कि खेल के बारे में ही सोच रहे हो। एक सेकेंड के लिए तो तुमने मुझे डरा ही दिया था.....नहीं नहीं छोड़ो। इतना कहकर वो बाहर आ गए।
क्या हो गया? बच्चे पर किस बात के लिए शक कर रहे थे? अपने ही बेटे पर हर समय शक करना अच्छा नहीं है। क्या कर रहे हो? ये मत करो, ये करो। अरे छोड़िए न जो मन में आए उसे करने दीजिए न। नाहक ही परेशान रहते हैं। अरे! नहीं मैं बस ये देख रहा था कि पढ़ाई तो नहीं करने लगा। बस मुझे इसी बात का डर रहता है कि राहुल कहीं किसी दिन ये न कह दे कि पापा मुझे पढ़ाई में मज़ा आता है। मुझे उसे डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार या फिर आईएएस नहीं बनाना भाई। अजीब आदमी हैं आप! लोग अपने बच्चे को पढ़ाने-लिखाने के लिए क्या-क्या नहीं करते। और एक आप हैं कि अपने बेटे को पढ़ाना नहीं चाहते। दरअसल बात वो नहीं है। राहुल पढ़ लिखकर क्या कर लेगा? कितना नाम कमा लेगा? कितने पैसे कमा लेगा? थोड़े से। फिर सारी ज़िंदगी हमलोगों की तरह पैसों के लिए तंग रहेगा। मैं तो चाहता हूं कि क्रिकेट खेले। खूब पैसे कमाए। नाम, पैसा और शोहरत सब एक साथ। देखा तुमने टीम इंडिया के खिलाड़ियों को कितने पैसे मिल रहे हैं। अरे! आने वाले दिनों में रकम तो और बढ़ेगी ही न। हमारे मां-बाप ने हमें खेलने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया। पर हम तो इस हाल में हैं कि अपने बच्चे को खेलने के लिए कहें। उसके लिए खर्च करें। और ऐसे में जरा सी भी पढ़ाई की इच्छा जागती रही तो बस हो गया। सब चौपट हो जाएगा। माना कि किस्मत ने साथ नहीं दिया तो टीम इंडिया में नहीं खेलेगा पर इतना तो है ही कि रणजी तक तो पहुंच ही जाएगा। आने वाले दिनों में उसमें भी बहुत पैसा मिलेगा।
राहुल के पापा और मम्मी की बातचीत उस समाज की सच्चाई है जब हर तरफ सचिन, धोनी और युवराज जैसे खिलाड़ी घरों में भगवान की तरह पूजे जाते हैं। मुख्य वजह एक ही है पैसा। युवाओं से ज्यादा दिलचस्पी उनके घर वालों में है। ऐसा नहीं कि ये कहानी सिर्फ राहुल के घऱ की है। आज की तारीख में ये हर घर की हकीकत हो गई है।
हमारे गुरुओं ने हमें पढ़ाया था कि समाज में परिवर्तन होने में लंबा समय लगता है। कई बार इसमें पचास वर्ष तक का समय लग जाता है। लेकिन क्रिकेट के लिए घरों में ऐसी मानसिकता महज दो-तीन साल के अंदर पैदा हुई है और ये संक्रमित बीमारी की तरह हर घर में फैल रही है। बच्चों के खेलने-कूदने को लेकर किसी को कोई दिक्कत नहीं हो सकती। बल्कि स्वास्थ्य की द़ष्टि से ये लाभप्रद है। पर उसके पीछे का मक़सद इतना ग़लत है जिसका खामियाजा किसी भी बच्चे को भुगतना पड़ सकता है। ऐसे में जो बच्चे आगे चल पड़े वो तो तीर हैं लेकिन जो नहीं चले उनकी ज़िंदगी नरक से बदतर हो जाएगी।
ज़ाहिर है बच्चों में कुछ भी जबरदस्ती ठूंसने की कोशिश, उसकी स्वाभाविकता से खिलवाड़ है। ऐसे में ये बच्चे उन तमाम बच्चों से ज्यादा खतरनाक साबित होंगे जिनकी ज़िंदगी पर किसी का बुरा साया पड़ गया हो।
क्या हो गया? बच्चे पर किस बात के लिए शक कर रहे थे? अपने ही बेटे पर हर समय शक करना अच्छा नहीं है। क्या कर रहे हो? ये मत करो, ये करो। अरे छोड़िए न जो मन में आए उसे करने दीजिए न। नाहक ही परेशान रहते हैं। अरे! नहीं मैं बस ये देख रहा था कि पढ़ाई तो नहीं करने लगा। बस मुझे इसी बात का डर रहता है कि राहुल कहीं किसी दिन ये न कह दे कि पापा मुझे पढ़ाई में मज़ा आता है। मुझे उसे डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार या फिर आईएएस नहीं बनाना भाई। अजीब आदमी हैं आप! लोग अपने बच्चे को पढ़ाने-लिखाने के लिए क्या-क्या नहीं करते। और एक आप हैं कि अपने बेटे को पढ़ाना नहीं चाहते। दरअसल बात वो नहीं है। राहुल पढ़ लिखकर क्या कर लेगा? कितना नाम कमा लेगा? कितने पैसे कमा लेगा? थोड़े से। फिर सारी ज़िंदगी हमलोगों की तरह पैसों के लिए तंग रहेगा। मैं तो चाहता हूं कि क्रिकेट खेले। खूब पैसे कमाए। नाम, पैसा और शोहरत सब एक साथ। देखा तुमने टीम इंडिया के खिलाड़ियों को कितने पैसे मिल रहे हैं। अरे! आने वाले दिनों में रकम तो और बढ़ेगी ही न। हमारे मां-बाप ने हमें खेलने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया। पर हम तो इस हाल में हैं कि अपने बच्चे को खेलने के लिए कहें। उसके लिए खर्च करें। और ऐसे में जरा सी भी पढ़ाई की इच्छा जागती रही तो बस हो गया। सब चौपट हो जाएगा। माना कि किस्मत ने साथ नहीं दिया तो टीम इंडिया में नहीं खेलेगा पर इतना तो है ही कि रणजी तक तो पहुंच ही जाएगा। आने वाले दिनों में उसमें भी बहुत पैसा मिलेगा।
राहुल के पापा और मम्मी की बातचीत उस समाज की सच्चाई है जब हर तरफ सचिन, धोनी और युवराज जैसे खिलाड़ी घरों में भगवान की तरह पूजे जाते हैं। मुख्य वजह एक ही है पैसा। युवाओं से ज्यादा दिलचस्पी उनके घर वालों में है। ऐसा नहीं कि ये कहानी सिर्फ राहुल के घऱ की है। आज की तारीख में ये हर घर की हकीकत हो गई है।
हमारे गुरुओं ने हमें पढ़ाया था कि समाज में परिवर्तन होने में लंबा समय लगता है। कई बार इसमें पचास वर्ष तक का समय लग जाता है। लेकिन क्रिकेट के लिए घरों में ऐसी मानसिकता महज दो-तीन साल के अंदर पैदा हुई है और ये संक्रमित बीमारी की तरह हर घर में फैल रही है। बच्चों के खेलने-कूदने को लेकर किसी को कोई दिक्कत नहीं हो सकती। बल्कि स्वास्थ्य की द़ष्टि से ये लाभप्रद है। पर उसके पीछे का मक़सद इतना ग़लत है जिसका खामियाजा किसी भी बच्चे को भुगतना पड़ सकता है। ऐसे में जो बच्चे आगे चल पड़े वो तो तीर हैं लेकिन जो नहीं चले उनकी ज़िंदगी नरक से बदतर हो जाएगी।
ज़ाहिर है बच्चों में कुछ भी जबरदस्ती ठूंसने की कोशिश, उसकी स्वाभाविकता से खिलवाड़ है। ऐसे में ये बच्चे उन तमाम बच्चों से ज्यादा खतरनाक साबित होंगे जिनकी ज़िंदगी पर किसी का बुरा साया पड़ गया हो।
टिप्पणियाँ
पढोगे लिखोगे तो बनोगे खराब
खेलोगे कूदोगे तो बनोगे नवाब ( युवराज)